कांग्रेसियों का कांग्रेस से मोहभंग

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कांग्रेस जो देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनीति पार्टी थी उस कांग्रेस से अब आम जनता का ही नहीं खुद कांग्रेसियों का भी मोह भंग होता जा रहा है। जो कांग्रेसी नेता कांग्रेस पार्टी को राजनीतिक दल नहीं एक विचारधारा बताया करते थे और उसकी चुनावी हार को सिर्फ बख्ती उतार—चढ़ाव बताकर यह कहा करते थे कि काग्रेस जब जब कमजोर हुई है तब तक और मजबूत होकर उभरी है वह कांग्रेसी भी कांग्रेस को छोड़कर भाग रहे हैं। कांग्रेस के पतन का यह सिलसिला जो स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी की केंद्र में सरकार बनने से शुरू हुआ था वह केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अपने चरम पर पहुंच चुका है। आज वर्तमान में कांग्रेस की जो वास्तविक स्थिति है वह किसी क्षेत्रीय दल जैसी हो गई है। भले ही कांग्रेसी नेता इसे स्वीकार करें या न करें लेकिन सच यही है। केंद्रीय सत्ता पर अब उसकी कितनी पकड़ शेष बची है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि उसे दूसरे राजनीतिक दल मुख्य विपक्षी दल भी मानने को तैयार नहीं। भाजपा नेताओं द्वारा जब कांग्रेस मुक्त भारत की बात कही जाती थी तो उन्हें बड़ा बुरा लगता था लेकिन आज एक—एक कर उसकी तमाम राज्यों से सत्ता जाती चली जा रही है। अभी बीते दिनों जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनमें कांग्रेस का प्रदर्शन अत्यंत ही खराब रहा था पंजाब और उत्तराखंड में तो उसकी सत्ता हाथ से फिसल ही गई है उत्तर प्रदेश में उसकी स्थिति में रत्ती भर सुधार नहीं देखा गया। 2016 में उत्तराखंड कांग्रेस में हुए बड़े विभाजन के बाद से लेकर अब तक तमाम छोटे—बड़े नेता कांग्रेस से जा चुके हैं। चुनाव के दौरान किशोर उपाध्याय जैसे नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए, सो तो चले ही गए अभी भी यह सिलसिला जारी है बीते कल जोत सिंह बिष्ट ने भी कांग्रेस से हाथ झटक कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। यह सोचनीय बात है कि कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी को छोड़कर अगर कोई जोत सिंह बिष्ट जैसा नेता आप जैसी पार्टी में चला जाता है तो इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस की अहमियत अब कांग्रेसी नेताओं के जेहन में आप जैसी पार्टी के बराबर भी नहीं रह गई है। जोत सिंह बिष्ट का कहना है कि कांग्रेस अब व्यक्तिगत हितों की पार्टी रह गई है। पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट का आरोप बेबुनियाद नहीं है। कांग्रेस में जो भी नेता बचे हैं उनके लिए पार्टी का हित कोई मायने नहीं रखता है उन्हें सिर्फ अपने ही हितों के लिए लड़ना होता है खास बात यह है कि यह अपने हितों की लड़ाई वह अपनी ही पार्टी के नेताओं से लड़ रहे हैं। वह अपनी और पार्टी की बड़ी से बड़ी हार पर न दुखी होते हैं न विचलित होते हैं उन्हें तो सबसे ज्यादा सुख अपनी ही पार्टी के दूसरे नेताओं को हराते हुए देखकर मिलता है। सही मायने में कांग्रेस की इस दुर्दशा के लिए खुद कांग्रेसी नेता ही जिम्मेवार है।

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