भले ही अभी भारत में कोरोना संक्रमण को लेकर हालात नियंत्रण में हो लेकिन इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं क्योंकि पड़ोसी देश चीन में इस समय कोरोना विस्फोटक रूप ले चुका है। जिसका प्रभाव अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, इटली और ताइवान सहित दर्जन भर देशों में देखा जा रहा है। 2020 में जब चीन के बुहान से कोरोना की शुरुआत हुई थी तो उसे भारत पहुंचने में 7 माह का समय लगा था। भारत में जब पहले 10 से भी कम संक्रमित लोगों की पहचान हुई थी तब भारत द्वारा कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे जिसके कारण भारत को कोरोना की पहली लहर में बहुत कम नुकसान हुआ था लेकिन पहली लहर के बाद जब पाबंदिया हटाई गई तो इस महामारी ने भारत में कहर बरपा दिया था जिसकी त्रासदी भरी यादों और अनुभवों को याद कर आज भी रूह कांप उठती है। खास बात यह है कि जब 3 साल बाद एक बार फिर से कोरोना के नए वैरीयंट वीएफ 7 के हमले को लेकर पूरा विश्व डरा हुआ है तो भारत इससे भला अलग कैसे रह सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमने पुराने अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है। यही कारण है कि हम एक बार फिर अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती को परख रहे हैं। स्कूल और कॉलेजों में छात्रों व शिक्षकों के लिए तथा अदालतों में सभी के लिए मांस्क को जरूरी कर दिया गया है और सोशल डिस्टेंसिंग व भीड़भाड़ से बचने की नसीहतें दी जा रही है। यह सब कुछ बेवजह नहीं किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर अब विदेशों से आने वाले यात्रियों की रैंडम आरटी पीसीआर जांच की जा रही है। बीते 2 दिनों में 6 हजार लोगों की जांच के दौरान 39 कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कोरोना का यह नया वैरीयंट भारत नहीं पहुंचा है। सही मायने में सबसे अधिक खतरा बाहर से आने वाले लोगों से ही है। सरकार को चाहिए कि वह विदेशों से आने वाले हर व्यक्ति की जांच को अनिवार्य करें। भारत के कई विशेषज्ञों द्वारा इस बात की आशंका जताई जा रही है कि आने वाले साल के पहले 40 दिन भारत के लिए कोरोना संक्रमण फैलने के दृष्टिकोण से बहुत ही भारी रहने वाले हैं इस दौरान देश को कोरोना की चौथी लहर से दो—चार होना पड़ सकता है। हालांकि वैक्सीनेशन कवर और हाई यूम्निटी सिस्टम का हवाला देकर तथा स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर व्यवस्था को लेकर इसके कम असरकारक रहने की बात भी कही जा रही है। लेकिन हालात कैसे रहेंगे इसका फैसला आने वाला समय ही करेगा। हां इतना तो कहा ही जा सकता है कि बचाओ इलाज से ज्यादा बेहतर है। यह सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वह इस संभावित खतरे को देखते हुए पूरी सावधानियां बरतें। नए साल के जश्नों की भीड़भाड़ से अपने आप को अलग रखें।