उत्तराखंड राज्य गठन के दो दशक बाद भी अपनी हर छोटी बड़ी जरूरतोंं के लिए राज्य की केंद्र पर निर्भरता इस बात का प्रमाण है कि प्रचुर संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद भी अब तक सरकारों द्वारा अपने वित्तीय हालात को सुधारने के ठोस प्रयास नहीं किए गए। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद जब एनडी तिवारी के नेतृत्व में पहली निर्वाचित सरकार बनी थी तो राज्य को ऊर्जा प्रदेश बनाने की जोरदार पहल की गई थी। एनडी तिवारी द्वारा पदभार संभालने के बाद कई बड़ी विघुत परियोजनाओं के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को बुलाकर उनका शिलान्यास कराया गया था। लेकिन इन योजनाओं पर सूबाई राजनीति के हावी होने के कारण उनमें से अधिकांश का काम अभी तक अधर में लटका हुआ है। राज्य की पर्यावरणीय स्थिति बिगड़ने का हवाला देकर इन परियोजनाओं का विरोध जब शुरू हुआ तो अपने मुख्यमंत्रित्व काल में डॉ निशंक द्वारा केंद्र की कांग्रेस सरकार को इन्हें रोकने के लिए पत्र लिखा गया। आज सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा खुद प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर राज्य की अधर में लटकी 44 बिजली परियोजनाओं को शुरू कराने में सहयोग की अपील की जा रही है। राज्य में 70 बिजली परियोजनाओं में से सिर्फ 21 में बिजली उत्पादन हो रहा है और राज्य आज भी अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों से महंगी दरों पर बिजली खरीदने पर विवश है। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि अधर में लटकी बिजली परियोजनाओं को अगर पूरा कर लिया जाए तो राज्य को 4800 मेघावाट बिजली उत्पादन होगा और राज्य को 16000 करोड़ के राजस्व की प्राप्ति होगी वही लाखों बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मिल सकेगा। अगर उत्तराखंड की पूर्ववर्ती सरकारों ने इस मुद्दे पर राजनीति नहीं की होती तो आज यह राज्य ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी राज्य होता अपितु आत्मनिर्भर राज्य बन चुका होता। ठीक ऐसी ही स्थिति पर्यटन के क्षेत्र की भी रही है। राज्य में चारों धामों के अलावा हेमकुंड साहिब सहित सैकड़ों तीर्थ और पर्यटन स्थल ऐसे हैं जिनके विकास के लिए काम करके राज्य की दिशा और दशा को बदला जा सकता था लेकिन सूबे के नेता पर्यटन विकास को लेकर हवा हवाई बातें करने तक ही सीमित रहे। अगर केंद्र की मोदी सरकार ने ऑल वेदर रोड और अब रोपवे तथा रेलवे के साथ हेली और एयरवेज सुविधाओं का विस्तारीकरण और धामों के जीर्णाेद्धार की योजनाओं पर काम न किया होता तो आज भी उत्तराखंड का पर्यटन वहीं खड़ा होता जहां 20 साल पहले था। ऐसी स्थिति मेंं यह कहना भी अनुचित नहीं कहा जा सकता है कि अब तक राज्य में जो भी विकास के नाम पर दिखाई दे रहा है वह केंद्र की मोदी सरकार की मेहरबानियोंं का परिणाम है। अब सीएम धामी ने पीएम के सामने अपनी जो आधा दर्जन से अधिक मांगे रखी है उनमें से कितनी मांगों पर सहयोग मिलता है समय ही बताएगा लेकिन राज्य को अपने वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने के लिए काम करना ही होगा तभी राज्य को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।