कमजोर विपक्ष लोकतंत्र को खतरा

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अवनीति और भगदड़ के संकट से जूझ रही कांग्रेस ने कल नई दिल्ली में हल्ला बोल दिल्ली का आयोजन किया जिसमें अच्छी खासी भीड़ भी दिखाई दी और राहुल गांधी के तल्ख तेवर भी। उन्होंने महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर तो केंद्र की भाजपा और पीएम मोदी को घेरा ही इसके साथ ही उन्होंने उन पर नफरत और भय फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा गया कि वर्तमान केंद्र सरकार विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए ईडी और सीबीआई का बेजा इस्तेमाल कर रही है। राहुल गांधी यही नहीं रुके उन्होंने मीडिया, न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाया और कहा कि जब विपक्ष और आम लोगों की आवाज दबाई जा रही है तो तब उनके पास जनता के बीच जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। इसमें कोई दो राय भी नहीं है कि लोकतंत्र तो जनता की राय पर चलता है भाजपा या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अगर सत्ता में है तो उन्हें भी जनता ने ही यह अधिकार दिया है। इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि जब जब किसी सत्ताधारी दल या नेता ने जनता को नकारने या उसके हितों को चोट पहुंचाई है जनता ने उसे नकार कर सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं की है। स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जिन्होंने देश में इमरजेंसी लगाने का काम किया था उन्हें एक ही झटके में सत्ता से बाहर कर दिया गया था। आज की परिस्थितियों में भी भले ही भाजपा और उसके नेता स्वयं को अपराजित माने बैठे हो और सत्ता के अहंकार का शिकार होकर बड़ी बड़ी बातें या दावे कर रहे हो लेकिन अगर देश की जनता के मन में एक बार भी यह बैठ गया कि वह और उनकी सरकार जनहितों के खिलाफ काम कर रही है तो उन्हें फिर वही पहुंचने में बहुत समय नहीं लगेगा जहां से वह चले थे। जहां तक बात बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी की है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा सरकार के 8 सालों में इसके सभी रिकॉर्ड टूट चुके हैं। जैसे जीएसटी कलेक्शन ने सरकार की आय बढ़ाने के पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए वैसे ही देश के लोगों ने इतनी महंगाई व बेरोजगारी पहले कभी नहीं देखी है। समाज में धार्मिक उन्माद और कटृरवाद की प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि हो रही है। विश्वविघालयों से लेकर सड़कों तक सर तन से जुदा के नारे लग ही नहीं रहे हैं बल्कि आए दिन ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, जो एक चिंता का विषय है। .ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग या विपक्ष को डराने के लिए उसका इस्तेमाल किए जाने का जो आरोप लगाया जा रहा है उसके पीछे कारण यह है कि यह छापेमारी सिर्फ विपक्षी दलों के नेताओं पर क्यों? क्या सत्ता पक्ष पूरा का पूरा दूध का धुला है। राहुल गांधी जो जनता में जाने को ही अंतिम विकल्प मान रहे हैं उनकी यह सोच तो सही है लेकिन क्या जनता उनकी बात को गंभीरता से लेगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि देश का विपक्ष कमजोर हो चुका और बिखरा हुआ है तथा विपक्ष की एकता पर जनता को कोई भरोसा नहीं रहा है और यही भाजपा और उसके नेताओं की बड़ी ताकत बन चुकी है। यही कारण है कि भाजपा नेताओं के लिए विपक्षी दल और उसके नेता सिर्फ हंसी ठिठोली का विषय बने हैं। भले ही यह स्थिति देश में लोकतंत्र के लिए घातक सही लेकिन आज का सच तो यही है।

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