भारत के पड़ोसी देशों में अभी बीते दिनों जिस तरह की राजनीतिक उथल—पुथल और जनाक्रोश की घटनाएं देखी गई है वह किसी विदेशी ताकत के कारण नहीं अपितु सरकारों के कुशासन का नतीजा है। युवाओं में बढ़ती नाराजगी जिसे जेन—जी ताकत के रूप में देखा जा रहा है इसका खौफ सत्ता में बैठे नेताओं के चेहरों पर साफ—साफ देखा जा सकता है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा दिया गया यह बयान की केंद्र सरकार के उसे नरेशन के खिलाफ तो है ही जिसे भारतीय नेता गढने में जुटे हुए थे साथ—साथ उनके अंदर के छिपे उस डर को भी उजागर करने वाला है जो खतरा अब सरकार देश के युवाओं की नाराजगी के रूप में देख रही है। अजीत डोभाल ने भले ही अपनी बात को थोड़ा घुमा फिरा कर कहने की कोशिश की है। लेकिन उनके इस बयान का सीधा आशय यही है कि वह वर्तमान एनडीए सरकार को भी इस बात की नसीहत कर रहे हैं कि देश के युवाओं में अगर सत्ता के खिलाफ आक्रोश पनप रहा है तो वह सत्ता के कुशासन के कारण ही है। अब तक एक नहीं देश में तमाम ऐसी घटनाएं पेश आ चुकी है कि जब युवाओं को सड़कों पर उतरते हुए देखा गया है। देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं है जहां सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं के पर्चे लीक होने की घटनाएं न हुई हो। मोदी सरकार द्वारा इन युवाओं को नौकरी देने के वायदे तो बहुत किए जाते रहे हैं। हर साल 2 करोड़ नौकरी देने वाले प्रधानमंत्री मोदी 10 सालों में भी 2 करोड़ लोगों को नौकरी नहीं दिला सके। जिन विभागों में नौकरियों के अवसर मिलते थे उन्हें सरकार ने निजी हाथों में दे डाला है। और अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर तमाम भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा युवाओं को सामूहिक कार्यक्रमों में नियुक्तियों के पत्र बांटने का काम किया गया। और तो और सत्ता में बैठे लोग स्वरोजगार के साथ पकौड़ी तलने को भी रोजगार बताकर युवाओं का मजाक बनाते रहे हैं। सत्ता सीन नेताओं की इन हरकतों पर यदि युवा बेरोजगारों को गुस्सा आता है तो वह बाजिब ही है। अभी हमने उत्तराखंड में ट्रिपल एसएससी के पेपर लीक मामले में युवाओं की नाराजगी देखी थी। सत्ता पक्ष ने इसे मैनेज करने के लिए तमाम तरह के इवेंट प्रायोजित किया और बात नहीं बनी तो फिर उनकी सीबीआई जांच की मांग स्वीकार करने में ही अपनी भलाई समझी गई। जो सरकार पेपर लीक की घटना को पेपर लीक मानने से भी इंकार कर रही हो वह भला कैसे सीबीआई जांच को तैयार हो गई। यह जेन जी के खतरे का ही नतीजा था जिससे सभी नेता और सरकार डरी हुई है। देश में अगर ऐसे हालात पैदा हो गए हैं तो वह किसी और कारण से नहीं बल्कि सत्ता के कुशासन का ही नतीजा है। इसके खतरे से अजीत डोभाल सरकार को आगाज करने के साथ नसीहत भी दे रहे हैं। पीएम मोदी जो देश की युवा ताकत के दम पर सत्ता तक पहुंचे और अब तक सत्ता में बने हुए हैं अब वही जेन जी उनके लिए खतरे की घंटी भी बनता जा रहा है। कोई भी सरकार अगर देश के युवाओं का भरोसा खो बैठी है तो फिर उनका सत्ता में बने रहना मुश्किल हो जाता है। भले ही वह इसके लिए कोई भी हथकंडा अपना ले। सत्ता में बैठे लोग इन दिनों मुद्दों के अभाव से जूझ रहे हैं तथा जो कृत्रिम मुद्दे खड़े किए जा रहे हैं वह भी विपक्ष के तीखे हमलो के सामने टिक नहीं पा रहे हैं।





