बिहार की धरती से अभी देश के लोगों ने ट्टवोट चोर गद्दी छोड़’ के नारे की गूंज सुनी थी, अब उसी तर्ज पर उत्तराखंड की देवभूमि से पेपर चोर का शोर सुनाई दे रहा है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग की भर्ती का एक और पर्चा लीक होने से नाराज युवा और बेरोजगार कल बेरोजगार संघ के आह्वान पर राजधानी की सड़कों पर भीड़ की शक्ल में उमड़ पड़े तो इस युवा शक्ति के सामने शासन प्रशासन भी लाचार और बेबस दिखा। जिला मजिस्ट्रेट द्वारा युवाओं के आक्रोश को रोकने के लिए दून में धारा 163 लागू कर दी गई, लेकिन इन युवाओं ने किसी की भी बात की परवाह न करते हुए पुलिस के सामने ही सरकार और आयोग के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। इन युवाओं द्वारा ट्टधामी सरकार मुर्दाबाद और पेपर चोर गद्दी छोड़, के नारे लगाए गए सारे दिन राजधानी की सड़कों पर युवाओं का यह हाईटेक ड्रामा जारी रहा और शासन—प्रशासन को खुली चुनौती देते देखे गए। उन्होंने साफ ऐलान किया कि कोई धारा 163 नहीं है। यहां आज प्रदेश के युवाओं का ही कानून लागू रहेगा। पुलिस प्रशासन ने उन्हें सचिवालय तो नहीं जाने दिया लेकिन वह उन्हें परेड ग्राउंड के आसपास जमे रहने से भी नहीं रोक सके। अगर इस समस्या पर गंभीरता से गौर किया जाए तो युवाओं के अंदर का यह आक्रोश एक दिन या एक घटना की परिणिति नहीं है। 2022 में जब पेपर लीक का मामला सामने आया था और लंबे समय से एक के बाद एक भर्ती परीक्षाओं में धांधली का मामला सामने आया था तब भर्ती घोटाले के बड़े नेक्सस का भंडाफोड़ हुआ था, जिसमें हाकम सिंह जैसे सत्ता के निकट सहयोगियों की बड़ी भूमिका सामने आई थी। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा उस समय उनके खिलाफ कार्रवाई का साहस जरूर दिखाया गया था, लेकिन करोड़ों के वारे—न्यारे कर चुके इन नकल माफियाओं को कोर्ट से जल्द ही जमानत मिल गई और वह फिर इस धंधे में जुट गए। जिसका खुलासा इस वर्तमान पेपर लीक मामले में भी सामने आ गया है। तब मुख्यमंत्री धामी ने एक सख्त नकल विरोधी कानून तो बनाया तथा उसमें नकल माफिया पर सख्त कार्रवाई करने की भी व्यवस्था की गई। मगर उसका क्या नतीजा रहा जब हालात आज भी जस के तस ही बने हुए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री धामी ने उस समय यह वायदा भी किया गया था कि वह इस पूरे मामले की सीबीआई जांच भी करायेगें लेकिन नकल विरोधी कानून लाकर वह भी खामोश होकर बैठ गए। जबकि प्रदेश के युवा अभी भी इसकी त्रांसत स्थिति का शिकार बने हुए हैं। युवाओं की मांग है कि इस परीक्षा को रद्द किया जाए तथा दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी हो। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य बनने के बाद सूबे के नेता और अधिकारी तो ऐश मौज कर रहे हैं लेकिन प्रदेश के आम नागरिकों और युवाओं के हालात में कुछ खास फर्क नहीं आया है। सचिवालय विधानसभा और बैक डोर भर्तियों और नकल माफिया के सरकारी नौकरियों पर हावी होने से पढ़े—लिखे और योग्य युवाओं को उनके अधिकार से जिस तरह वंचित किया गया है उसके परिणाम स्वरुप यह सब तो होना ही था जो अब हो रहा है।