नैतिक जिम्मेवारी लेंगे लेकिन इस्तीफा नहीं देंगे नेता
संगठन की कमजोरी के सर फोड़ा जा रहा है हार का ठीकरा
नई दिल्ली/देहरादून। पांच राज्यों में मिली करारी हार के बाद दिल्ली से दून तक चिंतन—मंथन का दौर जारी है। कुछ नेता हार की नैतिक जिम्मेवारी तो ले रहे हैं लेकिन इसके साथ ही वह कांग्रेस के कमजोर संागठनिक ढांचे पर भी इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं और भितरघात की जांच तथा उनके खिलाफ कार्रवाई की भी बात कर रहे हैं।
यह हास्यापद ही है कि हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने की औपचारिकता निभाने वाले इन नेताओं में से किसी ने भी अभी तक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है और वह यह कहकर अपना बचाव कर रहे हैं कि अगर हाईकमान कहेगा तो वह पद छोड़ने को तैयार हैं। धन्य है यह कांग्रेसी नेता और उनका यह हार की जिम्मेवारी लेने का तरीका। जो कुर्सी और पद से चिपके हुए हैं और हार की जिम्मेदारी भी ले रहे हैं।
नई दिल्ली में बीते कल चली 5 घंटे की आईसीसी की बैठक के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि वह पहले ही हार की नैतिक जिम्मेवारी ले चुके हैं और यह मान चुके हैं कि प्रदेश की जनता बदलाव चाहती थी और हमारे पास सत्ता में आने का बेहतरीन मौका था लेकिन हम अपनी बात जनता को समझाने में नाकाम रहे। इसलिए वह प्रदेश की जनता से माफी भी मांग चुके हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी हाईकमान के स्तर पर कहीं कोई कमी नहीं रही है राज्यों के स्तर पर हमें अपना संागठनिक ढांचा मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में भितरघात से भी नुकसान हुआ है इसकी जांच होगी और ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस हार के बाद ही हरीश रावत कैसे और किस तरह की नैतिक जिम्मेवारी ले रहे हैं तथा उनके बयानों का आशय क्या है? यह समझा जा सकता है।
वही एक दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी कांग्रेस की हार की जिम्मेवारी कुछ इसी अंदाज में ली थी तथा वह प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी छोड़ने को तैयार हैं जैसी बात यह कहते हुए की थी कि हाईकमान का आदेश होगा तो वह कुर्सी छोड़ देंगे।
इस हार को लेकर भले ही दिल्ली से लेकर दून तक हाहाकार मचा हो और कांग्रेस की सत्ता दो राज्यों तक ही सीमित रह गई हो लेकिन कांग्रेस में न कोई बड़ा फेरबदल होने जा रहा है और न ही कोई नेता नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देंने जा रहा है। हार के बाद चलने वाला यह चिंतन—मंथन इस बार भी महज एक औपचारिकता ही दिखाई दे रहा है। चंद दिनों में यह चर्चाएं खुद ब खुद बंद हो जाएगी और सब कुछ वैसे ही चलेगा जैसे पिछले दो दशकों से चल रहा है।