चुनावी दौर में अलगाववाद

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चुनावी दौर में जिस तरह से एक के बाद एक सनसनीखेज और अनूठे मुद्दे निकल कर सामने आ रहे हैं अगर उनमें सत्यता है तो वह निश्चित तौर पर अत्यंत गंभीर और चिंतनीय है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर उनके अन्ना आंदोलन और आप के पूर्व सहयोगी कुमार विश्वास द्वारा अलगाववाद के जो आरोप लगाए गए हैं वह कोई सामान्य आरोप नहीं है। यह आरोप राष्ट्रद्रोह के आरोप हैं। आम आदमी पार्टी को सिख फॉर जस्टिस द्वारा दिए गए चुनावी समर्थन ने इसकी गंभीरता को और भी बढ़ा दिया है। पंजाब के सीएम चन्नी ने प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को चिट्ठी लिखकर उनका ध्यान इस ओर आकर्षित कराया गया है जिस पर अमित शाह ने संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दृष्टिकोण से अत्यंत गंभीर बताया है। वह कोई सामान्य बात नहीं कही जा सकती है। इस मुद्दे पर अब अरविंद केजरीवाल तमाम तरह की सफाईयंा तो पेश कर ही रहे हैं इसके साथ ही वह भाजपा व कांग्रेस पर कई गंभीर आरोप लगाकर अपना बचाव भी करने में जुटे हुए हैं लेकिन इसके साथ ही वह एनआईए द्वारा अपने ऊपर केस दर्ज कराने की आशंका से भी डरे हुए हैं। इस मामले में कई अन्य सवाल भी हैं जिसमें सबसे अहम बात है निर्वाचन आयोग द्वारा कुमार विश्वास के उस ऑडियो पर प्रतिबंध लगाया जाना है जिसमें अरविंद केजरीवाल पर यह गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सीधे तौर पर समझे तो इन आरोपों की गंभीरता इतनी अधिक है कि वह पंजाब चुनाव को प्रभावित कर सकती है। दूसरी अहम बात यह है कि कुमार विश्वास को यह बातें पंजाब में होने वाले मतदान से चार दिन पूर्व ही क्यों याद आई? अगर केजरीवाल इतने ही खतरनाक मंसूबों वाला व्यक्ति है जिसे आतंकी की श्रेणी में रखा जाना चाहिए तो राष्ट्र हित में कुमार विश्वास ने इतना बड़ा सच क्यों छुपा कर रखा? क्यों अरविंद केजरीवाल को इतना ताकतवर पॉलिटिशन बनने का मौका दिया, क्या अरविंद केजरीवाल पर कुमार विश्वास ने जो आरोप लगाए है उनका कोई साक्ष्य उनके पास है या फिर सिर्फ यह आरोप जुबा—जबानी ही लगाए गए हैं। सत्य क्या है? इसकी जांच बहुत जरूरी है। यही नहीं इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी होना बहुत जरूरी है तथा दोषी जो भी हो उसे सजा मिलना भी जरूरी है। क्योंकि यह आरोप देश की एकता और अखंडता जैसे अति संवेदनशील मुद्दे से जुड़े हुए हैं। भले ही दौर चुनावी रहा होंंं, जहां आरोप—प्रत्यारोप का सहारा चुनाव जीतने और किसी को चुनाव हराने के लिए किया जाना आम बात सही। लेकिन इनकी भी अपनी सीमाएं तय है। अगर कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर मिथ्या आरोप लगाए हैं तो उन्हें भी इस पर चुप नहीं बैठना चाहिए भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर जो उग्रता दिखाई है वह भले ही चुनावी लाभ के मकसद से हो लेकिन यह अत्यंत गंभीर मसला है।

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