चुनाव पर ओमीक्रोन का साया

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चुनाव आयोग ने स्वास्थ्य सचिव से की वार्ता
राज्यों की सरकार व प्रशासन गंभीर नहीं

देहरादून/नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में फरवरी 2022 में होनेवाले विधानसभा चुनावों पर ओमीक्रोन का साया मंडराता दिख रहा है। इस बात की आशंका है कि फरवरी—मार्च माह में कोरोना की तीसरी लहर अपनी पीक पर पहुंच सकती है ऐसे में इन पांच राज्यों में चुनाव कराए जाए या नहीं इसे लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
भारत के मुख्य निर्वाचन आयोग ने आज केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण और अधिकारियों के साथ बैठक कर हालात की समीक्षा की तथा भविष्य की संभावनाओं पर विचार मंथन किया गया। इस दौरान निर्वाचन आयोग ने स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण से पूछा की ओमीक्रोन को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय की क्या रिपोर्ट है तथा आगामी तीन माह में इसके किस स्तर तक बढ़ने की संभावना है। जिस पर स्वास्थ्य सचिव ने कोरोना के मामलों में 25 प्रतिशत तक की वृद्धि की संभावनाएं जताई गई है जबकि कोरोना के नये वैरियंट ओमीक्रोन कोे लेकर कुछ भी कहने से इनकार किया है क्योंकि ओमीक्रोन नया वेरियंट है और इसकी गति व प्रभाव के बारे में अभी कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है। बैठक वं जनसभाओं में जमा होने वाली भीड़ और इसके विकल्पों पर भी विचार किया गया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कहना है कि आयोग की टीम अभी उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में जाकर भी स्थिति की समीक्षा करेगी तभी पांच जनवरी के बाद चुनावों की तारीखों और कार्यक्रम पर विचार किया जाएगा।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अभी बीते दिनों उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को कोरोना के बढ़ते खतरे के मद्देनजर चुनावी रैलियों पर रोक लगाने तथा डिजिटल प्रचार करने व चुनावों को दो—तीन महीने टालने का सुझाव भी दिया गया था। जिसके बाद चुनाव आयोग द्वारा स्थिति की गहन समीक्षा की जा रही है। अगर ओमीक्रोन वैरीयंट का तेजी से प्रभाव पड़ता है तो चुनाव आयोग चुनाव कार्यक्रम में फेरबदल कर सकता है। केंद्र सरकार इस बारे में क्या राय रखती है यह अलग बात है।
देश में कोरोना वायरस (डेल्टा प्लस) तथा ओमीक्रोन के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। ओमीक्रोन जहां देश के 19 राज्यों तक पैर पसार चुका है वहीं ओमीक्रोन के 568 मामले अब तक सामने आ चुके हैं तथा कोरोना संक्रमितों की संख्या भी 7000 के पास पहुंचने वाली है। अगर कोरोना की यह रफ्तार बढ़ती है तो पांच राज्यों के चुनावों पर इसका प्रभाव पड़ना तय है। खास बात यह है कि राज्यों की सरकारें अभी इसे लेकर गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। राजनीतिक दल के नेता चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं।

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