चुनाव जरूरी या जान

0
429

बीते कल मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने यह कहकर कि आगामी साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव तय समय पर ही होंगे, इन अटकलों पर विराम लगा दिया है कि चुनाव टाले भी जा सकते हैं। हालांकि अभी चुनाव होने में दो माह का समय शेष है तथा इन चुनावों के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा भी नहीं हुई है लेकिन कोरोना की तीसरी लहर को लेकर जो संभावनाएं जताई जा रही है तथा विश्व भर से जिस तरह की खबरें आ रही है व देश में लगातार कोरोना केस बढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में यह कह पाना मुश्किल है कि कब हालात बेकाबू हो जाए। देश में आठ राज्यों में संक्रमण की दर 10 फीसदी से ऊपर निकल चुकी है जबकि 14 राज्यों में संक्रमण दर 5 से 10 फीसदी के बीच है। दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों का तो हाल बेहाल होता जा रहा है। देश में अब प्रतिदिन नए मरीजों की संख्या का आंकड़ा दस हजार के पार जा चुका है। अगर हालात यही रहे तो जनवरी 2022 बीतते—बीतते कोरोना की स्थिति बेकाबू हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम विशेषज्ञ डॉक्टरों का अनुमान यही है कि आने वाले कुछ ही दिनों में कोरोना की सुनामी आने वाली है। लेकिन यह हास्यापद ही है कि दुनिया भर में ढोल बज रहा है पर हमारे नेताओं और सरकारों के कानों में इसकी आवाज पहुंच ही नहीं रही है। कल मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह साफ कहा कि कोई भी राजनीतिक दल और नेता नहीं चाहता कि चुनाव टाले जाएं? सवाल यह है कि चुनाव आयुक्त जिन चुनावों को संवैधानिक बाध्यता का नाम देकर राजनीतिक दलों की हां में हां मिला रहे हैं क्या इस देश में पहले कभी चुनाव नहीं टाले गए हैं? इससे पूर्व जब दो बार चुनाव टाले जा चुके हैं क्या तब कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं थी? अगर चुनाव तय समय पर कराया जाना कोई संवैधानिक बाध्यता होती तो उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा केंद्र व चुनाव आयोग से चुनाव टालने पर विचार करने के लिए क्यों कहा जाता। ऐसा लगता है कि नेताओं के लिए जिस तरह चुनाव से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं रह गया है वैसे ही चुनाव आयोग के लिए भी आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं रह गई है। कोरोना प्रोटोकाल के पालन के साथ चुनाव कराने की बात कहना तो बहुत आसान बात है लेकिन चुनाव में कोरोना की गाइडलाइन का पालन आसान नहीं है। अगर है तो चुनाव आयोग या कोई अन्य संस्था चुनाव से पूर्व होने वाली इन रैलियों को रोककर दिखाएं जिनमें लाखों की भीड़ उमड़ रही है। इन रैलियों में मास्क और दो गज की दूरी कितनी बनाकर रखी जा रही है। राजनीति का यह दोहरा चरित्र की एक तरफ राज्य सरकारों पर केंद्र सरकार और मोदी सख्ती बरतने के निर्देश देते हैं वही वह खुद बड़ी बड़ी रैलियां करते हैं क्या यह आम आदमी की जान से खिलवाड़ नहीं है?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here