समिति की जांच पर एक्शन आसान नहीं

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2016 से धूल फांक रही हैं टेक्निकल यूनिवर्सिटी भर्ती की जांच

सिफारशी भाजपा व संघ के नेताओं पर कार्यवाही बनी चुनौती

देहरादून। विधानसभा अध्यक्ष ने बैकडोर भर्तियों की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया और यह समिति अपना काम भी शुरू कर चुकी है लेकिन क्या इस समिति की रिपोर्ट पर शासन स्तर पर कोई कार्यवाही होगी? यह सवाल बेवजह नहीं है। क्योंकि पूर्व समय में कई विभागों में अवैध तरीके से हुई नियुक्तियों पर जांच समितियों द्वारा शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी जाने के कई सालों बाद भी आज तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं गई है। जिसका एक उदाहरण उत्तराखंड तकनीकी विश्वविघालय में हुई नियुक्तियों का मामला भी है। जिसकी 2016 में जांच की रिपोर्ट समिति ने सरकार को सौंप दी गई थी।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद जिस तरह नेताओं व अधिकारियों तथा उनके नजदीकियों ने नौकरियों की लूट खसोट की है अब उसकी परत दर परत उखड़ती जा रही है सिविल पुलिस में दरोगा भर्ती का मामला हो या फिर वन दरोगा व वन रक्षकों की नियुक्तियों का। अथवा स्कूल कॉलेजों व विश्वविघालयों में नियुक्ति का और या फिर विधानसभा और सचिवालय में हुई भर्तियों का, तमाम भर्तियां जांच के दायरे में इसलिए आ चुकी हैं क्योंकि राज्य में अब तक जो भी नियुक्तियां हुई है उन सभी नियुक्तियों में भारी अनियमितताएं बरती गई हैं। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी और धामी सरकार ने बैक डोर भर्तियों की जांच का जो दम दिखाया है उसे मुकाम तक पहुंचा पाना आसान नहीं है क्योंकि इन बैकडोर भर्तियों के जरिए सिर्फ गोविंद सिंह के पुत्र व पुत्र वधू ने ही नौकरी नहीं पाई है भाजपा के तमाम नेताओं के परिजनों और रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियां मिली है यही नहीं सरकार के करीबी संघ नेताओं ने भी अपने बच्चों को नौकरियां दिलवाई है। खास बात यह है कि इन नेताओं की संख्या एक दो नहीं दर्जनों में है।
अब जब यह मुद्दा भाजपा व सरकार के गले में फंस गया है तो उसे कुछ तो करना ही पड़ेगा लेकिन बात अब नौकरियों को रद्द करने से बनने वाली नहीं है जिसकी सिफारिश पर नौकरी दी गई और जिन नेताओं को इसका लाभ मिला उनके खिलाफ सरकार क्या कार्रवाई करेगी यह सवाल भी अहम हो गया है। किसी भी भ्रष्टाचारी को नहीं बख्शा जाएगा यह कहने से अब बात बनने वाली नहीं है और न ही जांच के नाम पर वैसी लीपापोती संभव है जैसी टेक्निकल यूनिवर्सिटी की जांच को लेकर की गई इसकी जांच रिपोर्ट जिस पर मुख्य सचिव के हस्ताक्षर हैं, में यह स्पष्ट कहा गया है कि यह नियुक्तियां न सिर्फ नियम विरुद्ध की गई बल्कि नियमों को ताक पर रखकर की गई हैं और मनमानी तरीके से वेतन मान तय किए गए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में 3 करोड़ से अधिक वेतन इन गैर वाजिब तरीके से नियुक्त कर्मचारियों को देने की बात करते हुए ब्याज सहित वसूली करने व नियुक्तियों को रद्द करने की सिफारिश की गई थी लेकिन 2016 की इस जांच रिपोर्ट पर आज तक कोई कार्यवाही शासन द्वारा नहीं की गई है ऐसे में विधानसभा की बैक डोर भर्तियों की जांच पर कोई कार्रवाई होगी? संदेह स्वाभाविक है।

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