आतंकवादी—आतंकवादी का खेला

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क्या हमारे देश के नेता आतंकवादी है या आतंकवादियों को उनके द्वारा संरक्षण और समर्थन दिया जाता है? यह सवाल इसलिए उठाया जाना जरूरी हो गया है क्योंकि इन दिनों चुनावी अखाड़े में नेताओं द्वारा जन समस्याओं से ज्यादा इसी मुद्दे की चर्चा की जा रही है। चुनावी दौर में इस वक्त सबसे अधिक आतंकवादी आतंकवादी का ही खेल खेला जा रहा है। यूं तो राजनीति में वाटला एनकाउंटर की घटना पर भाजपा द्वारा कांग्रेस की घेराबंदी की जाती रही है। लेकिन अभी हाल में कुमार विश्वास द्वारा अरविंद केजरीवाल पर किए गए सनसनीखेज खुलासे के बाद इस मुद्दे ने ऐसा तूल पकड़ लिया है कि अब अन्य तमाम मामले भी जुड़ते चले जा रहे हैं। 2008 के अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट मामले में फैसले के बाद अब भाजपा ने सपा को भी लपेट लिया है। इसमें फांसी की सजा पाने वालों में एक आरोपी कभी सपा में रहा होगा जिसे लेकर उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार में सपाइयों को आतंकवादियों की पार्टी बताया जा रहा है। अब तक अरविंद केजरीवाल यह सफाई दे रहे थे कि अगर भाजपा नेता उन्हें आतंकवादी बता रहे हैं तो फिर भाजपा का हर नेता आतंकवादी है। अब अखिलेश यादव भी कुछ इसी तरह की सफाई देते हुए भाजपाइयों को भी आतंकवादी बता रहे हैं। जेपी नड्डा कल एक जनसभा में बोलते हुए लोगों से अपील कर रहे थे कि वह आतंकवादियों को उभरने का मौका न दें। सपा की लाल टोपी को रेड अलर्ट बताने वाले प्रधानमंत्री का कहना है कि अहमदाबाद में साइकिल से ही बम प्लांट किए गए थे उनका कहना है कि इन बम रखने वाले साइकिल वालों को सत्ता में आने देना चाहिए या नहीं। निश्चित तौर पर देश के नेताओं की इस सोच पर किसी को भी शर्म भी आ सकती है जो अपने चुनावी लाभ के लिए आतंकवादी आतंकवादी का यह खेला खेल रहे हैं। अभी गृह मंत्री अमित शाह ने कुमार विश्वास के आरोपों को गंभीर बताते हुए कहा था कि गृह मंत्रालय द्वारा इसकी जांच कराई जाएगी। गृह मंत्री का यह बयान बताता है कि यह मामला सिर्फ चुनावी जुमलेबाजी नहीं है अगर ऐसी बात है तो इस मामले की उच्चस्तरीय जांच जरूरी है तथा दोषियों को बेनकाब किया जाना भी जरूरी है। क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों की आतंकवादियों से संलिप्ता मामूली बात नहीं समझी जा सकती है। ऐसे लोग देश की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। लेकिन इस आतंकवादी शब्द का प्रयोग जिस तरह से एक दूसरे के खिलाफ किया जा रहा है वह यह बताने के लिए भी काफी है कि इन नेताओं के लिए यह भी अन्य चुनावी जुमले की तरह ही है। जो इनकी सोच और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। चुनाव में किसी भी दल और नेता द्वारा किसी के भी खिलाफ आतंकवादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। चुनावी दौर में शब्दों की मर्यादांए लाघनेे नेताओं को यह समझने की भी जरूरत है कि इससे उनकी अपनी छवि भी खराब हो रही है। चुनावी दौर में आने वाली शिकायतों में मानहानि की बहुतायत में होने वाली शिकायतें नेताओं के हल्के पन का ही सबूत है।

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