दावों के बीच भी डावंाडोल है नेताओं के मन
निर्दलीय विधायकों की चमकेगी किस्मत?
देहरादून। भले ही मतदान के तुरंत बाद भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं द्वारा अपनी—अपनी जीत के बड़े—बड़े दावे किए जा रहे हो, लेकिन जैसे—जैसे मतगणना की तारीख करीब आती जा रही है उनके वायदे और दावों की हवा निकलती जा रही है। भितरघात की खबरों ने भाजपा का उत्साह ठंडा कर दिया है वहीं जमीनी हकीकत का जायजा जानकर कांग्रेसी नेताओं का जोश भी जमीन पर आता दिख रहा है।
चुनाव परिणामों को लेकर भले ही यह नेता मीडिया के सामने कुछ भी कहे लेकिन अंदर की बात यह है कि चुनाव परिणामों को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के अंदर समानांतर बेकली और बेचैनी है, और किसी भी दल को इस बात को लेकर पक्का भरोसा नहीं है की जीत उसकी ही होगी। यही कारण है कि कई राजनीतिक समीक्षक तो यहां तक कह रहे हैं कि सूबे में फिर एक बार 2012 की पुनरावृति होती है तो वह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं हो सकती है।
बहुमत के जादुई आंकड़े तक कौन सा दल पहुंचता है? या कोई पहुंचता भी है या नहीं इसका पता 10 मार्च को ही चल सकेगा। भाजपा की पूरी सफलता मोदी मैजिक पर निर्भर है वर्तमान चुनाव में भी अगर 2017 जैसा मोदी मैजिक कामयाब हुआ तो भाजपा का सत्ता में बने रहना सुनिश्चित माना जा सकता है। वही भितरघात से होने वाले नुकसान पर भी भाजपा की सफलता—असफलता का गणित निर्भर करता है लेकिन यह तय है कि 2017 जैसा कोई कमाल इस चुनाव में भाजपा नहीं करने जा रही है। जहां तक कांग्रेस की सत्ता में वापसी की बात है तो वह भी इन्हीं 2 फैक्टरोंं पर निर्भर करती है। अगर जनता का उसे साथ मिलता है तो वह भाजपा की अंदरूनी खींचतान के कारण ही मिलेगा। और उसके पास भी बहुमत से बहुत ज्यादा सीटें होंगी इसकी संभावनाएं खुद कांग्रेसी नेताओं को भी नहीं है। तीसरा विकल्प आप और बसपा की सफलता—असफलता भी भाजपा व कांग्रेस के नेताओं पर भारी पड़ सकती है।
भाजपा और कांग्रेस नेताओं को भी इस बात की आशंका है कि कहीं उनकी सीटों का आंकड़ा 30 और 32 के आसपास ही न अटक जाए। इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर अब भाजपा व कांग्रेस के नेताओं ने उन तमाम निर्दलीयों से संपर्क साधना शुरू कर दिए हैं जिनकी संख्या इस बार 5—6 के आसपास दिखाई दे रही है। वहीं 2017 के चुनाव में शून्य पर सिमट जाने वाली बसपा भी एक बार फिर तीन से चार सीटों पर प्रभावशाली नजर आ रही है। अगर समीकरण ऐसे ही रहे तो राज्य में एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा के आसार भी कम नहीं है। सत्ता की दौड़ में फिर कौन आगे निकलेगा और क्या एक स्थिर सरकार राज्य को मिल पाएगी? जैसे सवाल भी अहम हो जाएंगे।