हम सभी देशवासियों को इस बात का गर्व है कि हमारा गणतंत्र विश्व का सबसे पुराना गणतंत्र है। निश्चित तौर पर हमें इसका गर्व होना भी चाहिए लेकिन आज जब देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है तो क्या हमें इस पर चिंतन—मंथन करने की जरूरत है कि इन 73 सालों के गणतंत्र के सफर में हम लोक हितों को विकसित करने और उनकी सुरक्षा करने में कितने आगे बढ़ सके और कितने सफल हो सके। गणतंत्र शब्द का निर्माण गण और तंत्र से मिलकर हुआ है । गणतंत्र में आज गण के हित कितने गौण हो चुके हैं और तंत्र उस पर किस तरह हावी हो चुका है या होता जा रहा है? यह एक चिंतनीय सवाल है अभी बीते साल देश में 3 कृषि कानूनों के खिलाफ जो किसान आंदोलन हमने देखा वह इसलिए भी ऐतिहासिक आंदोलन था क्योंकि आजादी के बाद चलने वाला यह सबसे लंबा आंदोलन था। सालों तक किसान सड़कों पर पड़े रहे उन्हें सत्ताधारियों ने कारों से रौंदा, एक साल से भी अधिक समय तक उनकी कोई बात नहीं सुनी गई और जब चुनावों पर इसका प्रभाव पड़ने का संकट मंडराने लगा तो तुरंत फुरत इसे सरकार द्वारा वापस ले लिया गया। जब गणतंत्र लागू हुआ था उस समय देश की आबादी 36 करोड़ थी और अब 73 साल बाद सवा सौ करोड़ से ऊपर है। बात भले ही हमारे नेताओं द्वारा आत्मनिर्भर भारत की की जा रही हो लेकिन कोरोना काल में 80 करोड़ लोगों को पांच—पांच किलो मुफ्त राशन देने की सरकार को जरूरत क्यों पड़ी? क्या 73 साल में हम इतना ही आत्मनिर्भर हो पाये है। यह सच है कि खाघान्न उत्पादन में देश आत्मनिर्भर हुआ लेकिन क्या गरीब और किसान संपन्न भी हुए? अगर नहीं तो फिर हम किस तंत्र पर गर्व करें। अभी एक और समाचार आया था कि कोरोना काल में गरीब व अमीरों के बीच की खाई और अधिक बढ़ गई है, इसमें कोई सन्देह भी नहीं है। बेरोजगारी और महंगाई की मार ने गरीब को और ज्यादा गरीब बना दिया और अमीरों को और अधिक अमीर। देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है जिसका कोई निदान हमारा तंत्र 73 सालों में नहीं ढूंढ सका है। महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा आज भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। बाल कुपोषण, अशिक्षा की तरह अनेक समस्याएं आज भी हावी है। जिस अनेकता में एकता की खूबी के लिए इस देश के गणतंत्र को विश्व भर में सराहा जाता है और जो इसकी बुनियादी मजबूती है उस पर किस तरह जाति, धर्म और सांप्रदायिकता हावी हो रही है क्या इस सवाल पर चिंतन की आज जरूरत नहीं है? देश के लोगों को कमजोर करके अगर कोई तंत्र स्वयं को मजबूत करने का काम कर रहा है तो वह गणतंत्र को वास्तव में कमजोर ही कर रहा है। जब तक गण को मजबूत नहीं किया जाएगा तब तक कोई भी गणतंत्र मजबूत नहीं बने रह सकता है। हम अपने गणतंत्र पर यूं ही गर्व करते रहें इसके लिए यह जरूरी है कि तंत्र पर बैठे लोग गण के कल्याण की कामना और इच्छा शक्ति के साथ काम करें क्योंकि गण से ही गणतंत्र का अस्तित्व है।