क्या नाइट कर्फ्यू से रोका जा सकेगा कोरोना को?

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मुख्यमंत्री का दावा, जनता की सुरक्षा से नहीं करेंगे समझौता

देहरादून। उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के मामलों में दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि हो रही है जबकि इसे रोकने के दावे और उपायों को धरातल पर नहीं देखा जा रहा है। नाइट कर्फ्यू जिसका कोई औचित्य नहीं है और मास्क तथा सोशल डिस्टेंसिंग जो महज औपचारिकताएं भर के लिए है, के बीच आम आदमी की जान मुसीबत में है। नेताओं को चुनावी रैलियों से फुर्सत नहीं है जबकि आम आदमी की लापरवाहियोंं की कोई सीमा नहीं है तो क्या कोरोना को रोका जा सकता है?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से जब चुनावी रैलियों पर रोक के बारे में पूछा जाता है तो उनका कहना होता है कि जनता की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। लेकिन विजय संकल्प यात्रा और जनसभा तथा रैलियों का सिलसिला लगातार जारी है। वहीं बाजारों में उमड़ती भीड़ और कोरोना गाइड लाइनों की उड़ाई जा रही धज्जियों से आप सभी अवगत हैं। पलटन बाजार में इस भीड़ को देखकर आपको यह अंदाजा हो सकता है कि यहां कोरोना गाइडलाइनों का कितना पालन हो रहा है?
यह हाल तब है जब बीते 24 घंटों में राज्य में आए 630 नए मामलों में राजधानी दून के 268 से भी अधिक मामले हैं। राज्य में सिर्फ नाइट कर्फ्यू लगा कर शासन—प्रशासन कोरोना को रोकने का सपना देख रहा है। चुनावी रैलियों में नेता और भीड़ द्वारा भी किसी गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है। राज्य में टेस्टिंग भी पर्याप्त संख्या में नहीं हो रही है। कोरोनेशन के एक डॉक्टर और दून अस्पताल के चार टेक्नीशियन कोरोना संक्रमित मिल चुके हैं। हालात भले ही दिन—ब—दिन बिगड़ते जा रहे हो लेकिन कोरोना की तीसरी लहर से निपटने की तैयारियां धरातल पर कहीं दिखाई नहीं दे रही है।

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