एक दीप जलाओ तुम, एक दीप जलायें हम

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इस दिल की देहरी पे एक दीप धरे हम
ताउम्र ही इस तमस से लड़ते रहे हम
अंधियार में वह दम नहीं, जो हम को हरा दे
अन्तस के उजाले हैं, डरते नहीं हैं हम,

आज इस दीपोत्सव पर अपने मन के दीप से बात करने का मन हुआ तो मुझे बरबस ही अपनी लिखी उक्त पंक्तियां अपनी बात शुरू करने के लिए उपयुक्त लगी। जिंदगी मेरी हो या आपकी या किसी की भी सही, धूप—छांव अंधेरे—उजाले हर एक जिंदगी का हिस्सा है। अंधेरा न किसी को भाता और न अंधेरे की चाहत किसी को होती है जबकि उजियारे सभी को अच्छे भी लगते हैं और सभी की चाहत भी होते हैं। लेकिन यह सत्य है कि अंधेरे अगर न होते तो उजियारे की चाहत भी कभी किसी को नहीं होती। इन अंधेरों से हमें जीवन में उजाले भरने के लिए संघर्ष शक्ति मिलती है। हर अन्याय के खिलाफ लड़ने और उसे हराने की जिद का प्रादुर्भाव होता है। अगर विघोतमा ने कालिदास के अज्ञानता के अंधेरे को न ललकारा होता तो कालिदास कभी कालिदास नहीं बन सकते थे।

अंधेरा चाहे किसी भी तरह का हो, उसकी चुनौती को स्वीकारना उजाले की ओर अग्रसर करने की राह प्रशस्त करता है। यह सत्य न सिर्फ भौतिक जगत का सत्य है अपितु अध्यात्म जगत का भी सार्वभौमिक सत्य भी यही है। जब मन के उजियारे का प्रकाश फैलता है जग उजियारा हो जाता है। मानव मन में हमेशा से ही अंर्तमन उजियारे और भौतिक जग उजियारे को लेकर अंतर्द्वंद की स्थितियां बनी रहती है। लेकिन यह सत्य है कि भौतिक उजयारें आपके इस जीवन को उजालों से भर सकते हैं लेकिन आपके अंतर्मन के उजियारे आपके लौगिक जीवन को भी उजालों से भर देते हैं। हर काल और समय में आदमी इस किस्म—किस्म के अंधेरों से लड़ता रहा है उसने अपनी संस्कृति और सभ्यता का जो विकास किया है वह उस लड़ाई का ही परिणाम है जो वह कालांतर से अपने अंदर और बाहर के अंधेरों के खिलाफ लड़ी है। आप और हम सभी की यह लड़ाई जो अंधेरों के खिलाफ है कभी खत्म न होने वाली लड़ाई है। जब तक भी इस धरा पर कहीं भी और किसी भी तरह का अंधेरा शेष रहेगा यह लड़ाई भी जारी रहेगी। इस दिवाली पर आप एक दीप जरूर जलाएंगे। इन्हीं शुभकामनाओं सहित।

`अंधेरों की जिद है हरा कर रहेंगे हम
उजालों की जिद है मिटा कर रहेंगे हम
हमने जलाया दीप एक, तुम भी जलाओ
आज दीवाली तो मना कर रहेंगे हम,

संपादक
दून वैली मेल (सांध्य दैनिक)
देहरादून

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