हड़बड़ी में बड़ी—बड़ी गड़बड़ी

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किसी ने भी इस बात की कल्पना नहीं की होगी कि 18वीं लोकसभा चुनाव के परिणाम अपेक्षित नहीं रहे तो भाजपा नेताओं का संयम इस कदर डांवाडोल हो जाएगा कि वह एक के बाद एक हड़बड़ी में इतनी बड़ी—बड़ी गड़बड़ी करते चले जाएंगे जो भाजपा के हर कदम में मुश्किल है बढ़ाते जाएंगे। सच यह है कि इसकी शुरुआत चुनाव प्रचार के दौरान ही हो गई थी जब भाजपा के नेता चुनावी मुद्दों से भटक कर इधर—उधर के मुद्दों के जरिए जनता का ध्यान भटकाने की कोशिशों में जुटे हुए थे और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा द्वारा यह कहा गया था कि भाजपा को अब संघ के सहयोग की कोई जरूरत नहीं है। चुनावी नतीजों में भाजपा को उत्तर प्रदेश में बड़ी हार मिलने पर जब पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच तकरार शुरू हुई तो भाजपा नेताओं का मानसिक संतुलन और भी डांवाडोल हो गया। योगी को सीएम पद से हटाने की मुहिम के बीच बाबा का वह बुलडोजर भी आ गया जिसने उनकी राजनीति को सबसे ज्यादा चमक प्रदान की थी। अभी उनके द्वारा कावड़ यात्रा मार्गों पर दुकानदारों की पहचान के बोर्ड लगाने का जो फैसला लिया गया जिसे हड़बड़ी में गड़बड़ी वाला फैसला बताया जा रहा था उस पर अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए स्टे से भी यह साफ हो गया है कि यह फैसला हड़बड़ी में गड़बड़ी वाला ही था। इसके बाद केंद्र की एनडीए सरकार द्वारा संसद के पहले ही सत्र में 50 साल पूर्व लागू की गई इमरजेंसी को लेकर जो प्रस्ताव लाया गया जिसमें 25 जून को लोकतंत्र की हत्या दिवस मनाए जाने की बात कही गई है इससे देश की समस्याओं और विकास से कुछ लेना—देना नहीं है जिसे गड़बड़ इसलिए कहा जा सकता है कि अब देश में एक दिन संविधान का और लोकतंत्र का स्थापना दिवस मनाया करेंगे और एक दिन लोकतंत्र की हत्या का दिवस मनाया करेंगे। बात यहीं समाप्त होने वाली नहीं है सत्ता में बैठे लोग लगातार कुछ ऐसे ही फैसले लेते जा रहे हैं। राज्यसभा में उत्तराखंड के सांसद नरेश बंसल द्वारा संविधान से इंडिया शब्दों को हटाए जाने का प्रस्ताव लाया गया है जिसमें इंडिया शब्द को गुलामी का प्रतीक बताया गया है। सवाल इस बात का है कि देश में इंडिया गठबंधन बनने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इंडिया के वोट मांगते रहे हैं। वह स्वयं प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया तो है ही इसके साथ ही उनके द्वारा खेलो इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे स्लोगन भी स्वयं ही तो गाड़े गए थे। बीते 10 साल में भाजपा के नेताओं को इंडिया शब्द से कभी गुलामी की बू क्यों नहीं आई जो अब वह संविधान में संशोधन कर इंडिया शब्द को हटाने की बात कर रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान हमने देखा था कि पीएम मोदी इंडिया गठबंधन को कैसे इंडी नाम से संबोधित करते थे। सवाल यह है कि अब इंडिया से भाजपा को इतनी कड़वाहट व नफरत क्यों है? हो सकता है सत्ता में बैठे लोग बहुत जल्द हड़बड़ी में ऐसा कुछ कर डाले क्योंकि राज्यसभा में यह मुद्दा यूं ही नहीं उठाया गया है। कल अचानक सरकार द्वारा संघ पर लगा वह 66 साल पूर्व प्रतिबंध हटा लिया गया है जो सरकारी कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रमों में जाने की इजाजत नहीं देता था। दरअसल भाजपा के नेता इस चुनावी परिणाम से इतने असहज दिखाई दे रहे हैं कि वह कब क्या करें उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा है। सरकार कब चली जाएगी इसका उन्हें कतई भरोसा नहीं है इसलिए हड़बड़ी में लगातार गड़बड़ियां होती जा रही है। पहले संघ को नाराज किया अब खुश करने की कोशिश हो रही है मगर हड़बड़ी में की जाने वाली इन गड़बड़ियों से हालात सुधरने की बजाय और खराब हो रहे हैं।

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