वर्तमान लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में पहुंचते—पहुंचते चुनावी भाषणों में टीका टिप्पणियों की बात तो समझ में आती है लेकिन इसके बावजूद भी आम आदमी अपने जन प्रतिनिधियों से मर्यादित भाषा की अपेक्षा जरूर रखता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि 2014 के आम चुनाव के बाद देश की राजनीति के चेहरे में भारी बदलाव आया है। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे किसी व्यक्ति को अति विशिष्ट श्रेणी में रखा जाता है। इससे पूर्व देश के लोगों ने शायद कभी किसी प्रधानमंत्री को न तो हर छोटे—बड़े चुनाव में वर्तमान प्रधानमंत्री की तरह चुनाव प्रचार करते देखा था और न सार्वजनिक मंचों से उस तरह की भाषा श्ौली का इस्तेमाल अपने भाषणों में करते देखा था जैसा कि प्रधानमंत्री द्वारा इस चुनाव में किया जा रहा है। उनके द्वारा इंडिया गठबंधन के नेताओं द्वारा वोट के लिए जिहादियों की गुलामी करने की बात करते हुए कहा है कि वह उनकी गुलामी करें तो करें चाहे तो उनके लिए मुजरा करें लेकिन वह अनुसूचित और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण से वंचित नहीं होने देंगे। सवाल यह है की मुजरा क्या होता है और मुजरा कौन करता है क्या प्रधानमंत्री को इतना भी पता नहीं है। इस चुनाव में प्रचार करने वाली महिलाएं अगर पीएम के इस बयान पर आग बबूला है तो यह स्वाभाविक ही है। एक तरफ प्रधानमंत्री स्वयं की उत्पत्ति जैविक कारणों से न होने की बात करते हुए कहते हैं कि उन्हें तो परमात्मा ने भेजा है और कुछ खास प्रयोजन के कारण भेजा है। अगर उनकी बात मान भी ली जाए कि वह ईश्वर के अवतार हैं तब भी क्या किसी महावतार द्वारा इस तरह की भाषा का प्रयोग महिलाओं के लिए करना चाहिए। स्वयं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का उनके इस बयान के बारे में कहना है कि देश के लोगों के सामने उनका असली चेहरा आ गया है। बाकी तमाम महिलाओं और नेताओं द्वारा भी पीएम के इस बयान की निंदा करते हुए कहा जा रहा है कि चुनावी हार के डर से पीएम इस कदर बौखला गए हैं कि उन्हें क्या कहना चाहिए इसका भी उन्हें बोध नहीं रह गया है यह उनकी हताशा का ही परिणाम है। अभी उन्होंने अपने भाषणों में कांग्रेसी तुम्हारे भ्ौंस चुरा ले जाएंगे, मंगलसूत्र चुरा ले जाएंगे, तुम्हारा आरक्षण छीनकर उन्हें दे देंगे जो ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं तथा मुसलमानों को घुसपैठिये जैसे शब्द कहे थे। अब वह कह रहे हैं कि हमने तुम्हें जो नल से जल दिया है उसकी टोटी खोल ले जाएंगे तुम्हें जो गैस सिलेंडर दिया है उसे उठा ले जाएंगे तुम्हारा बिजली कनेक्शन काट ले जाएंगे। प्रधानमंत्री के इन बयानों से लोग भी हैरान है। विपक्षी नेता तो यहां तक कह रहे हैं कि देश में पीएम पद की गरिमा का भी उन्हें कोई ख्याल नहीं है न देश की उस छवि का जिसको विश्व गुरू बनाने की बात की जाती है। राहुल गांधी ने अपने चुनावी भाषणों में मोदी सरनेम पर की गयी टिप्पणी के लिए उनकी संसद सदस्यता रद्द हो जाती है घर छीन लिया जाता है लेकिन प्रधानमंत्री अगर अपने चुनावी भाषणों में कुछ भी कह देते हैं तो न चुनाव आयोग कोई कार्यवाही करता है न कोर्ट। इस चुनाव के नतीजे चाहे जो भी रहे और सत्ता किसी के भी पास रहे लेकिन इस 2024 के चुनाव को आचार संहिता और भाषाई मर्यादा के उल्लघंन के लिए भी जाना जाएगा यह तय है।