उत्तराखंड के जंगलों पर आदमी का अनाधिकृत कब्जा

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समस्याः जानवर जाए तो कहां जाए?

  • लगातार बढ़ रहे हैं जंगली जानवरों के हमले
  • जंगलों पर अतिक्रमण, वन विभाग व नेताओं की सांठ—गांठ

देहरादून। उत्तराखंड में वन्यजीवों के साथ बढ़ती संघर्ष की घटनाएं और हमले अब एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। आए दिन बढ़ते हमलों की घटनाओं से आम आदमी भयभीत है। वन विभाग की चौकसी और शासन—प्रशासन की कोशिशों से समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है। क्योंकि जंगलों पर आदमी का अतिक्रमण तमाम सीमाएं लांघ चुका है ऐसी स्थिति में यह जंगली जानवर भी जाए तो जाए कहां? आबादी क्षेत्र में उनकी घुसपैठ और पालतू जानवर तथा आम आदमी ही अब उनके शिकार का आसान टारगेट बन गया है।
अभी बीते चंद दिनों में राजधानी दून में घटित हुई तीन बड़ी घटनाओं ने दून के बाहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में खौफ पैदा कर दिया है। गल्जवाड़ी क्षेत्र में बीते रविवार की रात 9 वर्षीय बच्चे को फिर से गुलदार ने अपना निवाला बना लिया। बीते 26 दिसंबर को राजपुर के सिंगली गांव में घर के बरामदे से गुलदार मां के सामने ही उसके बच्चे को उठा कर ले गया। तीन साल के मासूम की मौत से क्षेत्र के लोग सन्न रह गए वहीं 14 जनवरी की शाम के समय कैनाल रोड पर नदी क्षेत्र में क्रिकेट खेल रहे एक 12 वर्षीय बच्चे पर गुलदार ने हमला कर दिया जिसमें उसकी जान जैसे—तैसे बच्ची। अभी पौड़ी में एक ही दिन में पांच महिलाओं पर हमले की घटनाएं सामने आई थी जिसके बाद सीएम धामी ने सभी जिला प्रशासनिक अधिकारियों को सतर्कता के निर्देश दिए थे।
सवाल यह है कि ऐसे सतर्कता के निर्देशों और वन विभाग के प्रयासों से जिसमें वह जगह—जगह पिंजरे लगाते दिखते हैं क्या लोगों की जान बचाई जा सकती है? या फिर आम लोगों के लिए एडवाइजरी जारी करने से उनकी सुरक्षा संभव है कदाचित भी नहीं, अगर ऐसे होता तो राजधानी दून जहां लगातार हमले की घटनाएं बढ़ती जा रही है पर रोक लगी होती। अगर बात सिर्फ दून की करें तो राजधानी बनने के बाद दून का जो विस्तारीकरण हुआ उस दौरान जंगलों पर किया गया अनाधिकृत कब्जा ही इसका सबसे अहम कारण है। गल्जवाड़ी के किमाड़ी में जहां बच्चे को गुलदार ने अपना शिकार बनाया वहंा जंगल में अतिक्रमण की इंतहा को देखा जा सकता है।
जंगलों में राज्य बनने के बाद किस तरह से बस्तियां बसा दी गई यह तो अलग बात है, यहां पांच सितारा होटल तक बनाकर खड़े कर दिए गये जिन्हें शासन प्रशासन भी चाहकर नहीं रोक सका। क्योंकि यह अतिक्रमण वन विभाग व नेताओं की साठ—गांठ से किया जा रहा है। सवाल यह भी है कि जब कैंट क्षेत्र में वन चौकी है तो वन विभाग के अधिकारियों द्वारा इसे क्यों नहीं रोका जा सका। हम बड़ी आसानी से वन्यजीवों के हमलो के लिए उन्हें गोली मार देने की बात कह देते हैं लेकिन सवाल यह है कि अगर आदमी जंगली जानवरों के घर (जंगल) पर कब्जा कर लेगा तो यह जंगली जानवर अगर हमला नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? बेचारे यह जानवर आखिरकार जाए तो जाए कहां? इस सवाल का जवाब किसी के भी पास नहीं है।

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