सड़कों की बदहाली

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मानसूनी सीजन में आसमान से बरस रही आफत थमने का नाम नहीं ले रही है। भले ही किसी प्राकृतिक प्रकोप पर इंसान का कोई बस न चले लेकिन मानसून जनित तमाम समस्याओं से निपटने की जो पूर्व तैयारियां की जानी चाहिए थी वह नहीं की गई जिसके कारण आज उत्तराखंड के हालात बद से बदतर हो चुके हैं। सबसे अधिक खराब कुछ है तो वह सड़कों की स्थिति है। राज्य की तमाम सड़कें या तो इतनी खराब स्थिति में पहुंच चुकी है कि उन पर चलना मौत से खेलने के बराबर है या फिर इन सड़कों पर आवाजाही संभव ही नहीं है। इस समय प्रदेश की सभी चारों नेशनल हाईवे सहित तीन सड़कें भूस्खलन या भू धसाव के कारण बंद है। जगह—जगह पुलिया और पुलों के टूट जाने से यातायात बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। उदाहरण के तौर पर आप रानीपोखरी पर बने पुल को भी ले सकते हैं जो गढ़वाल को जोड़ने वाला सबसे प्रमुख मार्ग है। पांच दिन पूर्व ध्वस्त हुए इस पुल का अब निर्माण हो सकेगा इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता है। ऋषिकेश टिहरी नेशनल हाईवे जो 2 सप्ताह पूर्व भारी भूस्खलन के कारण बर्बाद हो चुका है और इस मार्ग पर यातायात पूरी तरह से बंद हो चुका है कब तक पुनः दुरुस्त किया जा सकेगा इसका कुछ पता नहीं है। कहने को तो यह ऑल वेदर रोड है लेकिन भू धसाव के कारण इस रोड का नामो निशान मिट चुका है। ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्याे के लिए पहाड़ों पर किया गया बेतहाशा कटान एक ऐसी समस्या बन चुका है कि पहाड़ों से पत्थरों और मलवा का गिरना इतना आम हो गया है कि कोई सोच भी नहीं सकता है कि कब और कैसे ऊपर से कोई पत्थर आए और आपका जीवन समाप्त कर दें। जिन स्थानों पर थोड़ा बहुत मलवा आता है उसे बीआरओ की टीमें हटा देती हैं लेकिन हालात इतने खराब है कि एक दिन में सौ सड़कें बाधित होती है तो बमुश्किल 50—60 को ही खोल पाना संभव हो पाता है। लगातार हो रही बारिश के कारण पहाड़ की यात्रा तो जान हथेली पर लेकर की जा रही है साथ ही निर्माण कार्य हो पाना तो मुश्किल ही नहीं असंभव हो चुका है। सड़कों के बदहाल होने के कारण राज्य के सैकड़ों गांवों का संपर्क मुख्यालयों से टूटा हुआ है। लोगों तक खाने—पीने का जरूरी सामान तक नहीं पहुंच पा रहा है। सबसे बड़ी मुसीबत उन बीमार लोगों को झेलनी पड़ रही है जिन्हें किसी आकस्मिक स्थिति में इलाज की जरूरत होती है। लोग मरीजो को डोली से भी ले जाने में असमर्थ हैं। लोक निर्माण मंत्री सतपाल महाराज खुद सड़कों की स्थिति को लेकर चिंता जता रहे हैं लेकिन चिंता जताने से क्या कुछ हो सकता है? उनकी सरकार ने अगर इस तरफ ध्यान दिया होता शायद यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। अच्छा है कि इन दिनों चार धाम यात्रा नहीं चल रही है वरना पता नहीं क्या होता?

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