देहरादून। जो व्यक्ति अपने मन को भौतिक व्यापार से विलग नहीं कर सकता उसे आत्म साक्षात्कार में सफलता नहीं मिल सकती है। भौतिक भोगों में संलिप्त रहकर योगाभ्यास करना अग्नि में जल डालकर उसे प्रज्वलित करने जैसा ही है।
यह बात आज शिव पुराण कथा के अंतिम दिन आचार्य कथावाचक शिवप्रसाद ममगांई द्वारा कही गई। उन्होंने कहा कि शिव पुराण की कथा सुनने की कोई महत्ता तब तक नहीं है जब तक आपका मन शिव भावना भावित नहीं होता है। उन्होंने कहा कि भगवान शिव को देवता और दानव दोनों प्रिय हैं। सभी नर, मुनि, सुर, असुर उनकी पूजा करते हैं वह रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी वरदान देते हैं। उन्होंने भस्मासुर और शुक्राचार्य को भी वरदान दिया था। शिव सभी के आराध्य देव हैं। उन्होंने कहा कि शिव सदा कल्याणकारी हैं अजर है अमर है इसलिए उन्हें देवों के देव महादेव भी कहा जाता है।
इस अवसर पर उपस्थित सुनील उनियाल गामा ने कहा कि महिलाओं द्वारा आयोजित किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों से समाज में सेवा भाव की जागृति होती है। अखिल गढ़वाल महासभा के महासचिव राजेंद्र भंडारी ने अपने संबोधन में कहा कि धार्मिक आयोजन लोकहित का सशक्त माध्यम है। यह कथा महिला कल्याण समिति द्वारा आयोजित कराई गई थी। आज कथा के समापन के अवसर पर लक्ष्मी बहुगुणा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा सुजाता पाटनी, सरस्वती रतूड़ी, मंजू बडोनी, रोशनी सकलानी, लखपति बडोला, चंद्रशेखर तिवारी, मनोरमा डोभाल, शालिनी उनियाल, सरिता लखेड़ा, शांति नेगी, आचार्य दिवाकर भट,ृ प्रदीप नौटियाल, आदि अनेक लोग इस अवसर पर मौजूद रहे।