सत्यमेव जयते

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राहुल गांधी के मानहानि मामले में देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा जो फैसला दिया गया उसके अनेक ऐसे निःतार्थ है जो यह सिद्ध करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका का आज देश और दुनिया में क्यों डंका बज रहा है और क्यों इतना अधिक सम्मान है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाकर सिर्फ राहुल गांधी के लिए वह राजनीतिक संभावनाओं के दरवाजे नहीं खोल दिए हैं जिन्हें सत्ता में बैठी भाजपा और उसके नेताओं द्वारा राजनीतिक विद्वेश और बदले की भावना से हमेशा के लिए बंद करने के हर संभव प्रयास किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कल निचली अदालतों को भी इस फैसले से उन्हें अति गंभीर संदेश दिया जो सिर्फ किसी भी मामले की गंभीरता को समझे बिना ही सरसरी तौर पर सामने आई बातों के आधार पर फैसला करती है मोदी सरनेम को लेकर मानहानि का केस दर्ज कराने वाले व्यक्ति का असली सरनेम मोदी न होना तथा जिला अदालत से लेकर गुजरात हाईकोर्ट तक से राहुल गांधी को ऐसे एक मामले में जो गैर जमानती भी नहीं था सर्वाधिक 2 साल की सजा सुनाया जाना और संसद में उनकी लोकसभा सदस्यता को समाप्त कराने और उनसे सरकारी बंगला खाली कराने में जिस तरह की आक्रामकता और तत्परता दिखाई गई वह संसदीय व्यवस्था और लोकतांत्रिक परंपरा का पालन करने की कम अपितु बदले की भावना से की गई कार्यवाही ही अधिक थी। इस पर भले ही भाजपा और केंद्र सरकार के भीतर कुछ भी विमर्श चलता रहा हो लेकिन आम जनता में इसका संदेश अच्छा नहीं गया था और अब सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाकर तथा इस सजा को लेकर उठाए गए सवालों से यह साबित हो ही गयी है कि यह सिर्फ एक षड्यंत्र था जिसे कांग्रेस और राहुल गांधी को राजनीति के अखाड़े से बाहर धकेलने के लिए रचा गया था। यह सिर्फ राहुल गांधी और उनका परिवार ही था जो माफी मांगने के बजाय दृढ़ता के साथ न्याय की लड़ाई लड़ने पर अड़ा रहा और अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। आज की मौकापरस्त और अवसरवादी राजनीति के दौर में ऐसा करने का साहस शायद कोई दूसरा नेता नहीं दिखा सकता है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाते हुए कहा है कि राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त करने में सरकार ने 72 घंटे भी नहीं लगाए थे अब देखना है कि सरकार उनकी सदस्यता बहाल करने में कितना समय लगाती है। राहुल गांधी के इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए निचली अदालतों से भी यह पूछा है कि उन्हें इस मामले में अधिकतम सजा (2 साल) ही क्यों दी गई, यह सजा एक साल 11 महीने भी तो हो सकती थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनप्रतिनिधियों द्वारा की जाने वाली अनुचित बयान बाजी के बारे में उन्हें हिदायत दी गई है कि उनसे संयमित भाषा श्ौली की अपेक्षा की जानी चाहिए। लेकिन इन नेताओं को भला कौन समझा सकता है जो बोली से न मानने वालों को गोली से मनवाने और हम पहले किसी को छेड़ते नहीं और अगर कोई हमें छेड़े तो फिर हम उसे छोड़ते भी नहीं, को ही राजनीति करना माने बैठे हैं। इस पूरे प्रकरण में भाजपा और कांग्रेस को क्या राजनीतिक नफा नुकसान हुआ इसका हिसाब किताब आने वाले समय में देश की जनता ही करेगी लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस को भाजपा ने एक ऐसा मुद्दा जरूर थमा दिया जो भाजपा को बड़ा नुकसान देय साबित होगा। अभी फिलहाल भाजपा के उन नेताओं और चापलूसों की बोलती बंद है जो राहुल गांधी की सजा पर जश्न मना रहे थे और उन्हें माफी मांगने की मुफ्त में सलाह दे रहे थे। इस फैसले के बाद राहुल गांधी की जो सधी हुई प्रतिक्रिया सामने आई है उससे साफ हो गया है कि उनकी जो नीति और नियत पहले थी वह आज भी उस पर अडिग है और हमेशा अडिग रहेंगे। इस फैसले पर तमाम विपक्षी दलों की जो प्रतिक्रियाएं आ रही है वह यह बताने के लिए काफी है कि इस फैसले से कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन इंडिया को कितनी मजबूती मिलने वाली है। अंत में देश की उस न्यायपालिका को साधुवाद जहां लिखा होता है कि सत्यमेव जयते।

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