रामपुर तिराहा कांड में न्याय कब तक?

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रामपुर तिराहा कांड को 28 साल पूरे होने जा रहे हैं। उत्तराखंड राज्य भी अब अपने शैशव काल से निकलकर युवा उत्तराखंड बनने जा रहा है। उत्तराखंड राज्य के नेताओं को हमने अनेक बार राज्य के विकास पर इतराते हुए देखा है और सत्ता में बैठे लोग हमेशा ही उत्तराखंड राज्य को शहीदों के सपनों का राज्य बनाने के दावे करते रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड राज्य में सत्ता शीर्ष पर रहने वाली भाजपा और कांग्रेस की अब तक की सरकारें क्या रामपुर तिराहा कांड के शहीदों और मातृशक्ति को जिनका रामपुर तिराहा कांड में चीरहरण हुआ उन्हें इंसाफ दिला सकी है? यह सवाल बीते कई सालों से खास तौर पर उस समय जरूर उठता रहा है जब रामपुर तिराहा कांड की बरसी होती है। तुम्हारे कातिल जिंदा है और हम बहुत शर्मिंदा हैं के नारे लगाने वालों से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या वह वास्तव में शर्मिंदा हैं और अगर वह शर्मिंदा है तो कब तक शर्मिंदा रहेंगे? राज्य को बने हुए अब 23 साल होने जा रहे हैं और आप की सरकार है तो आप अब तक पीड़ितों को न्याय क्यों नहीं दिला सके? सूबे के नेता अपने दिल पर हाथ रख कर सोचे क्या सत्ता में रहते हुए उन्होंने न्याय के लिए ईमानदारी से कोई प्रयास किया है? अगर किया होता तो क्या 27-28 सालों में न्याय नहीं मिला होता। रामपुर तिराहा कांड में अगर आज तक न्याय नहीं मिल सका है तो इसके लिए सूबे के वह नेता और राजनीतिक दल जिम्मेवार हैं जो सत्ता में रहे हैं। इस अत्यंत ही संवेदनशील मुद्दे को नेताओं ने राज्य बनने के बाद इस लिए दरकिनार कर दिया गया क्योंकि उन्हें सत्ता भोग ज्यादा रास आया। रामपुर तिराहा कांड जिसमें 7 लोग शहीद हुए हैं तथा 4 लापता जिन्हें बाद में शहीद मान लिया गया कुल 11 लोग शहीद हुए थे और सीबीआई जांच में 16 महिलाओं के साथ दुराचार की पुष्टि की गई उन्हें अब तक न्याय दिलाने की लड़ाई जारी है लेकिन न्याय कब मिल पाएगा? मिल भी पाएगा या नहीं इसका जवाब किसी के पास नहीं है। यह कानूनी लड़ाई कहां तक पहुंची है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बीते कल मुजफ्फरनगर कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने जो चार्ज सीट दाखिल की है उसमें कहा गया है कि जिन महिलाओं के साथ दुराचार हुआ उनके नाम पते गलत होने के कारण अभी तक उन्हें समन तामील नहीं कराई जा सके हैं अब कोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगाते हुए 24 जुलाई को पीड़ित महिलाओं को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं। 26 27 साल में यह कानूनी लड़ाई सूबे की सरकार और नेता कैसे लड़ रहे हैं इससे इस बात का सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कितने शर्मिंदा हैं। अभी बीते दिनों दिल्ली में हैवानियत का शिकार हुई उत्तराखंड की बेटी को न्याय दिलाने के नाम पर कई सूबे के नेताओं को हमने देखा था सूबे के यह नेता अंकिता हत्याकांड को लेकर खूब उठक बैठक कर रहे हैं। सवाल यह है कि जब इन नेताओं ने 27 साल में रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा दिलाने के लिए कुछ नहीं किया तो यह किसी को क्या न्याय दिलाएंगे? जिस सीबीआई को सरकार का तोता कहा जाता है वह 27 साल में भी पीड़ित महिलाओं को नहीं ढूंढ सकी यह उसकी कार्यशैली को बताने के लिए काफी है। रामपुर तिराहा कांड का कोई पीड़ित और आरोपी अगले 27 साल जीवित बचेगा या नहीं क्योंकि आधे तो अब तक इन 27 सालों में मर खप गए हैं। बाकी भी जब तक न्याय मिलेगा इस ग्रह पर होंगे या नहीं फिर न्याय का करना भी क्या है।

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