विकट होती बाढ़ की समस्या

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उत्तराखंड में बाढ़ का खतरा और अधिक गंभीर होता दिख रहा है। पहाड़ पर हो रही भारी बारिश ने राज्य के निचले हिस्सों में जो तबाही मचाई है उससे ग्रामीण किसानों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है। बीते कल श्रीनगर बांध का जलस्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यहां से 3 हजार क्यूसेक पानी अलकनंदा नदी में छोड़ना पड़ा जिसके बाद देवप्रयाग व ऋषिकेश तथा हरिद्वार में गंगा का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया। प्रशासन द्वारा नदी के तटीय हिस्से में रहने वालों को मुनादी के जरिए सतर्क किया गया। हरिद्वार जनपद का आधे से अधिक हिस्सा पहले से ही बाढ़ की भयंकर त्रासदी झेल रहा है। रुड़की शहर के आवासीय क्षेत्रों में 3—3 फिट पानी भरा हुआ है इस जलभराव की समस्या से लोग इतने परेशान हैं कि पूर्व सीएम कल रुड़की में इस पानी के बीच ही स्थानीय लोगों के साथ धरने पर बैठ गए और उन्होंने नेशनल हाईवे को जाम कर दिया। यही नहीं लक्सर, भगवानपुर, नारसन क्षेत्र पूरी तरह से पानी में डूबा हुआ है। सोलानी नदी का तटबंध टूटने से इस क्षेत्र में भयानक बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई लोगों को अपनी और अपने मवेशियों की जान की सुरक्षा के लाले पड़ गए। खुद सीएम धामी ने इस क्षेत्र का दौरा करने के बाद केंद्र से आग्रह कर बाढ़ प्रभावितों की मदद के लिए यहां सेना तक बुलानी पड़ी। अभी यहां हालात सामान्य नहीं है लाखों हेक्टेयर जमीन जलमग्न होने से किसानों को यहां भारी नुकसान पहले ही हो चुका है अब श्रीनगर बांध से पानी छोड़े जाने से क्षेत्र में बाढ़ की समस्या और भी अधिक गंभीर होने वाली है यही नहीं मौसम विभाग द्वारा राज्य के 4 जिलों में जो भारी से भी भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया गया है अगर वह सच साबित होता है तो पहाड़ का पानी हरिद्वार सहित बड़े क्षेत्र में भारी तबाही की स्थिति पैदा कर सकता है। क्योंकि इस क्षेत्र के हालात पहले ही बद से बदतर हो चुके हैं। इसलिए आगे होने वाली किसी भी बड़ी तबाही को हरिद्वार के लोग कैसे झेल पाएंगे? यह एक अहम सवाल है। भले ही केंद्र सरकार द्वारा राज्य में मानसूनी आपदा से निपटने के लिये मदद के तौर पर मोटी रकम दी गई है लेकिन इससे हरिद्वार जनपद के किसानों की क्षति की भरपाई कर पाना मुश्किल हो जाएगा। अभी आपदा प्रबंधन में उत्तराखंड राज्य को भले ही बेहतर माना गया हो लेकिन राज्य का आपदा प्रबंधन कितना बेहतर है इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद भाजपा विधायक और विधान सभा स्पीकर ऋतु खंडूरी द्वारा भी 100 सवाल उठाए गए हैं। दरअसल उत्तराखंड का शासन—प्रशासन इस बात पर संतोष जाता रहा है कि यहां अभी तक जान की क्षति बहुत कम है तथा उसकी सोच है कि बस चंद दिन की बात है बारिश क्या होती ही रहेगी। दो—चार दिन में सब ठीक हो जाएगा लेकिन सरकार की इस सोच को सही नहीं ठहराया जा सकता है जोशीमठ ही नहीं अन्य तमाम आपदाओं में प्रभावित लोगों की समस्या का सालों साल तक कोई समाधान न होना और बेघर लोगों को कई कई साल तक निराश्रित जीवन यापन पर विवश होना यही बताता है कि सरकार की संवेदनशीलता सिर्फ पानी का स्तर चलने तक ही दिखाई देती है इसके बाद पीड़ितों की कोई जिम्मेदारी शासन प्रशासन पर नहीं रहती। बाढ़ की जिस विकट स्थिति से हरिद्वार के लोग जूझ रहे हैं उसका दर्द वह खुद ही जानते हैं लेकिन उन्हें इस गंभीर समस्या से निजात मिलने की उम्मीद भी नहीं दिख रही है।

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