ट्टनशा एक सामाजिक अभिशाप है। नशा मनुष्य के विवेक का नाश कर देता है और विवेक हीन मनुष्य समाज का, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह कथन आज भी उतना ही सत्य है जितना उनके समय में था लेकिन इस सत्य को कितने वर्षों पूर्व स्वीकार किए जाने के बाद भी इस समस्या का कोई समाधान नहीं खोजा जा सका है। कुछ खास मौकों पर नशे को लेकर सेमिनारों और जनजागृति कार्यक्रमों के आयोजन तक सीमित रह कर ही हम और हमारी सरकारों द्वारा अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। कल अंतरराष्ट्रीय मादकता निषेध दिवस के अवसर पर उत्तराखंड सहित पूरे देश में अनेक ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन इसका एक उदाहरण है। सवाल यह है कि आजादी के 75 साल बाद देश और देश के समाज की नशावृत्ति की क्या स्थिति है? उड़ता पंजाब जैसी फिल्में इसकी हकीकत को बयां करने के लिए काफी हैं। देश की युवा पीढ़ी और खासकर किशोरवय् के बच्चों तक को नशे ने किस कदर अपनी गिरफ्त में ले रखा है इसकी हकीकत को हर परिवार और हर व्यक्ति अच्छी तरह से जानता समझता है क्योंकि आज के वर्तमान में हर दूसरा परिवार इस समस्या का सामना कर रहा है किसी के बच्चे नशावृत्ति के जाल में फंसे हैं किसी परिवार के बड़े सदस्य इसकी गिरफ्त में हैं। जिसके कारण हर परिवार गृह क्लेश व अशांति का अखाड़ा बना हुआ है। वर्तमान दौर में हर एक व्यक्ति किसी न किसी तरह की समस्या से घिरा हुआ है और इस समस्या के कारण तनावग्रस्त आदमी नशे में अपनी समस्याओं का समाधान और जीवन का सकून तलाश रहा है खास बात यह है कि हर एक उस व्यक्ति को इस बात की जानकारी है कि वह जो कर रहा है वह समस्या का समाधान नहीं है। लेकिन नशा उसके विवेक को खा चुका है और वह नशा वृत्ति के अंधकार में डूब कर अपना और अपने परिवार का विनाश करने में लगा हुआ है। आज समाज के लिए नशा मुक्ति एक ऐसी बड़ी समस्या बन चुका है जिसका समाधान आसान नहीं है। समाज में नशे के तमाम प्रकारों का प्रचलन हो चुका है। राज्य की सरकारों द्वारा शराब और नशे के समान को अपनी आय का प्रमुख स्रोत बना लिया गया है। अगर कुछ सरकारों द्वारा इस पर रोक लगाने की कोशिशें की जाती है तो पूरा समाज सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाता है और सत्ता को ही पलट देता है इसका उदाहरण हरियाणा है। जहां भी सरकारों ने शराबबंदी का फैसला लिया है वहां अवैध शराब का कारोबार और अवैध शराब पीकर व्यापक स्तर पर लोगों की जान जाने की घटनाएं सामने आने लगती हैं अभी अभी बिहार में इस तरह की अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिन पर खुद सीएम नीतीश कुमार ने यहां तक कह दिया था कि पियोगे तो मरोगे ही इसमें सरकार क्या कर सकती है। उनके इस सख्त रुख को न तो विपक्ष दल पचा सके न वह आम जनता जो अवैध शराब सेवन से मरने पर 10—20 लाख मुआवजे की उम्मीद लगाए बैठी रहती है देश में नशा वृत्ति को रोकने के लिए लाखों लाख एनजीओ काम कर रहे हैं लेकिन उनका काम नशा वृत्ति को रोकना नहीं है वह काम नहीं कारोबार कर रहे हैं, नशा मुक्ति केंद्रों का काम सिर्फ कमाई करना है। इन नशावृत्ति केंद्रों में आए दिन होने वाली मौतों पर कोई भी सरकार गंभीर नहीं है। उत्तराखंड की सरकार द्वारा 2025 तक नशा मुक्त राज्य की बात कही जा रही है भले ही सुनने में यह बहुत सुखद प्रतीत हो रहा हो लेकिन क्या 2025 तक सरकार वास्तव में प्रदेश को नशा मुक्त राज्य बना देगी या यह धामी सरकार का विकल्प रहित संकल्प है? अगर इमानदारी से कहा जाए तो इस सवाल का जवाब है कदाचित ही नहीं। बीते कल धन सिंह रावत ने नशामुक्ति का संकल्प लेने और दिलाने वाले छात्रों को परीक्षा में 5 अंक अतिरिक्त दिए जाने की घोषणा की है सवाल यह नहीं है कि यह 5 अतिरिक्त अंक मिलेंगे या नहीं सवाल यह है कि क्या इस तरह के प्रयासों से प्रदेश को 2025 तक नशा मुक्त प्रदेश बनाया जा सकता है? उत्तराखंड जिसे अब एक पर्यटन राज्य के रूप में विकसित किया जा रहा है और पर्यटन जो मौज मस्ती के निमित्त है उस राज्य को पर्यटन राज्य बनाना और नशा मुक्त राज्य बनाना दो नावों में पैर रखकर नदी पार करने जैसी बातें हैं। इसे सिर्फ लफ्फाजी ही कहा जा सकता है।