पाप की कमाई से होगा पुण्य

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उत्तराखंड सरकार द्वारा कल आगामी वित्तीय वर्ष 2023—24 के लिए अपनी नई आबकारी नीति घोषित कर दी गई है। नई आबकारी नीति में सरकार ने राज्य में शराब को और सस्ता करने की घोषणा की गई है। सरकार का तर्क है कि उसने यह फैसला पड़ोसी राज्यों से होने वाली शराब तस्करी को रोकने के लिए किया है। पड़ोसी राज्यों में सस्ती शराब के कारण शराब की तस्करी की जाती है लेकिन राज्य में शराब की प्रति बोतल 100 से 300 रूपये तक सस्ती किए जाने के बावजूद भी पंजाब, हिमाचल और उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड के मुकाबले शराब अभी महंगी ही होगी। ऐसे में तस्करी रोकने का यह फार्मूला कितना कारगर होगा? यह समय ही बताएगा। सरकार एक तरफ उत्तराखंड को नशा मुक्त प्रदेश बनाने की बात करती है और नशे को देवभूमि के लिए अभिशाप मानती है लेकिन वही उसकी आबकारी नीति राज्य में शराब के सेवन को बढ़ावा देने की गवाही देती है। शराब जितनी सस्ती होगी उतनी अधिक बिक्री होगी और लोग उतना ही ज्यादा शराब पिएंगे। सरकार द्वारा हर साल शराब से होने वाली आय का लक्ष्य बढ़ा दिया जाता है शराब के ठेकों की संख्या बढ़ाने के साथ—साथ इसकी बिक्री बढ़ाने और अधिक से अधिक क्षेत्रों तक शराब की उपलब्धता सहज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। बीते समय में ठेकों के साथ मोबाइल वैन के जरिए शराब बेचने के प्रयोग उत्तराखंड की सरकारें कर चुकी है। इस साल भी सरकार द्वारा पुराने ठेकेदारों को यथावत ठेके चलाने की व्यवस्था जारी रखने या उन्हीं ठेकों की नीलामी करने का फैसला लिया गया जिन्हें ठेकेदार खुद छोड़ना चाहेंगे इसके साथ ही नई दुकानें खोलने का रास्ता भी खुला रखा है जिससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की नियत और मंशा शराब कारोबार को बढ़ाने की ही है हतोत्साहित करने की नहीं। सरकार ने अपनी आय का लक्ष्य भी 3600 से बढ़ाकर 4000 करोड़ कर दिया है। भले ही सरकार शराब पर 3 फीसदी सेस लगाकर इस अतिरिक्त आय को समाज कल्याण पर खर्च करने की बात कह रही हो। सरकार का कहना है कि इस अतिरिक्त कमाई को वह गौ संरक्षण महिला कल्याण व युवाओं को खेल प्रोत्साहन पर खर्च करेगी। क्या इसका मतलब यही निकाला जाए कि सरकार पाप की कमाई से अब पुण्य कार्य करने की सोच रही है। लेकिन यह सरकार की मर्जी पर ही निर्भर करता है कि वह इस शराब से होने वाली आय को किन मदों पर खर्च करती है। हां एक बात जरूर साफ है कि सरकार शराब से होने वाली आय का मोह छोड़ने को तैयार नहीं है। और वह लोगों को अधिक से अधिक शराब पिलाकर अधिक से अधिक कमाई करना चाहती है। भले ही यह शराब समाज में 100 बुराइयां क्यों न पैदा करें। दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के लोगों को खूब सस्ती शराब पिलाई। आबकारी व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भले ही दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प कर दिया हो लेकिन अब वह जेल की सलाखों के पीछे हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राज्य में शराब बंदी का फैसला कर प्रदेश के लोगों को भले ही नशे के दलदल से बाहर निकालने के प्रयास किए हो लेकिन राज्य में व्यापक स्तर पर शराब तस्करी और नकली शराब से होने वाली मौतों को लेकर वह भी विपक्ष के निशाने पर हैं। हरियाणा सरकार भी पूर्व समय में शराबबंदी के कारण सत्ता परिवर्तन जैसी स्थितियां देख चुकी है। उत्तराखंड जिसे देव भूमि कहा जाता है तथा जिसे धार्मिक पर्यटन राज्य बनाने की कोशिशें की जा रही हैं वहां शराब को लेकर सरकार हमेशा दुविधा में रही हैं। अगर शराब को छोड़ा तो पर्यटन चौपट हो जाएगा और शराब को प्रोत्साहित किया तो धार्मिक पर्यटन और आस्था पर आघात होगा। अब तक का सफर दो नाव पर सवारी जैसा ही रहा है। लेकिन उत्तराखंड जैसे राज्य में शराब को प्रोत्साहित कतई नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि धर्म स्थलों को नशा मुक्त रखना जरूरी है और देव संस्कृति की रक्षा भी जरूरी है।

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