सख्त भू कानून की ओर बढ़ते कदम

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी दूसरी पाली के दौरान फुल एक्शन मोड में है। राज्य में सिविल यूनिफॉर्म को लागू करने और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके हल्ला बोल से सूबे की राजनीति में भूचाल आ गया है। राज्य में नशा तस्करी को रोकने के लिए टास्क फोर्स के गठन का ऐलान वह कर चुके हैं तथा राज्य में सरकारी नशा मुक्ति केंद्र बनाने की घोषणा कर चुके हैं। राज्य में नए जिलों के सृजन से लेकर नया भू कानून लागू करने को लेकर भी वह संजीदा दिखाई दे रहे हैं। धामी ने जिन कामों को अपनी प्राथमिक सूची में रखा है और उन पर काम को आगे बढ़ाया है वह कोई साधारण काम नहीं है। यही कारण है बहुत कम समय में वह लोकप्रियता के नए मुकाम तक पहुंचते दिख रहे हैं। सरकार को बीते कल भू कानून पर तैयार अपनी रिपोर्ट समिति द्वारा सौंप दी गई है। राज्य गठन के बाद राज्य में एक सशक्त भू कानून का अभाव होने के कारण जमीनों की जिस तरह से लूट खसोट हुई है वह भी किसी से छिपा नहीं है। भूमाफिया द्वारा नेताओं और अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर खूब चांदी काटी है। नेताओं और अधिकारियों ने भी बहती गंगा में खूब डुबकियां लगाई है। अभी बीते दिनों भाजपा नेता रविंद्र जुगरान द्वारा प्रेम नगर क्षेत्र में सरकार द्वारा एसडीआरएफ और एनडीआरएफ को अलाट की गई कई बीघा जमीन पर अवैध कब्जे किए जाने का मामला सीएम के संज्ञान में लाया गया था यह तो एक उदाहरण भर है राजधानी दून से लेकर गैरसैंण तक इन माफियाओं ने तमाम जमीनों पर अपने कब्जे कर लिए हैं। राज्य के तमाम नेताओं व अधिकारियों द्वारा वन भूमि और सरकारी जमीनों, जिनकी कीमतें करोड़ों में हैं हथिया रखा है। राज्य भर के नदी नाले और खालो पर अतिक्रमण हो चुका है। हजारों अवैध बस्तियां इस कब्जाई जमीन पर बस चुकी हैं। मंदिर—मस्जिद व दरगाह की आड़ में भी जमीनों पर कब्जा किए जाने के तमाम मामले सामने आ चुके हैं। जमीनों की लूट खसौट का आलम यह रहा है कि लोगों और संस्थाओं द्वारा सरकार से जमीनें औघोगिक और अन्य जनहित कार्यों के प्रायोजन के लिए लीज पर ली गई और उनका उपयोग अन्य कामों के लिए किया गया। समिति द्वारा जो नए भू कानून का मसौदा सरकार को सौंपा गया है उसमें इस बात की भरपूर कोशिश की गई है कि जमीनों की इस लूट मार को कैसे रोका जाए। जिलाधिकारियों को जो पुराने भू कानून में असीमित अधिकार थे उन्हें सीमित करने और जनहित कार्यों जैसे अस्पताल व उघोग आदि के लिए जमीनों की खरीद की स्वीकृति सरकार से लेने का सुझाव दिया गया है। बाहरी लोग ढाई सौ वर्ग मीटर से अधिक आवासीय भूमि न खरीद सकें इसके सुझाव भी दिए गए हैं। देखना यह है कि सरकार अब हिमाचल की तरह उत्तराखंड में भी एक सख्त भू—कानून को अमलीजामा कब तक पहना पाती है।

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