लपेटे में नेता व अधिकारी

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उत्तराखंड राज्य का भर्ती घोटाला कोई मामूली घोटाला नहीं है। राज्य गठन के बाद सरकारी नौकरियों की खरीद—फरोख्त और लूटपाट के इस अति गंभीर मामले से जैसे—जैसे पर्दा उठ रहा है, चौंकाने वाले तथ्यों से सभी हैरान परेशान हैं। कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतने व्यापक स्तर पर नकल माफिया व नेता तथा नौकरशाह खेला कर सकते हैं। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से लेकर विधानसभा अध्यक्ष जैसे सर्वाेच्च संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारी और नेताओं ने नियम कानूनों की जिस तरह धज्जियां उड़ाई है वह अनैतिकता और भ्रष्टाचार की मिसाल है। जांच के दायरे में सिर्फ अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा कराई गई भर्तियां ही नहीं है। विधानसभा और सचिवालय में हुई भर्तियों के अलावा अन्य अनेक विभागों जिसमें पुलिस से लेकर वन और ऊर्जा से लेकर सहकारिता तक दर्जन भर से अधिक विभाग ऐसे हैं जिनमें हुई भर्तियां अब जांच के दायरे में है। मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर एसटीएफ द्वारा पेपर लीक मामले की जांच ही नहीं की जा रही है वह विधानसभा और दरोगा भर्ती की जांच के आदेश भी दे चुके हैं। इतने व्यापक स्तर पर हुई इन धांधलियों की जांच भले ही आसान काम नहीं है और न भर्ती घोटाले के आरोपियों को जेल पहुंचाना संभव है लेकिन वर्तमान सरकार इन मामलों की जांच से अब पीछे कदम भी नहीं ले सकती है क्योंकि ऐसा करने पर उसकी बड़ी छीछालेदर हो सकती है। यही कारण है कि पुष्कर सिंह धामी द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को खत लिख कर न सिर्फ जांच का अनुरोध किया है अपितु अनुचित तरीके से की गई भर्तियों को रद्द करने को भी कहा गया है। वही वह दरोगा भर्ती मामले की विजिलेंस जांच के आदेश भी दे चुके हैं। बीते कल आयोग के पूर्व सचिव बडोनी को निलंबित किए जाने और सीएम द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को खत लिखे जाने से यह तय हो गया है कि यह आग सहज बुझने वाली नहीं है। विधानसभा एक संवैधानिक संस्था है और विधानसभा अध्यक्ष का पद सर्वाेच्च संवैधानिक पद है। ऐसी स्थिति में अगर विधानसभा अध्यक्ष अपने पद की मर्यादा व गरिमा को ताक पर रखकर अवैध नियुक्तियां करने का काम करते हैं तो क्या उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। खैर उत्तराखंड अब नए—नए इतिहास रच रहा है। पहली बार आय से अधिक संपत्ति के मामले में कोई आईएएस अधिकारी जेल गया अब आयोग के पूर्व सचिव को निलंबित किया गया देखना होगा कि आगे कौन—कौन अधिकारी और किस किस नेता की बारी आने वाली है एक बात जरूर है कि अगर इन भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच हुई तो सूबे के कई अधिकारी व नेता जेल जा सकते हैं। जम्मू कश्मीर सरकार की तरह उत्तराखंड की सरकार को इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की पहल करनी चाहिए जिससे शासन—प्रशासन में जमा गंदगी की सफाई हो सके।

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