उत्तराखंड की राजनीति में अब तक भ्रष्टाचार ही सबसे बड़ा मुद्दा रहा है जब इस राज्य का गठन हुआ था तब सूबे के नेताओं में राज काज चलाने की जो अनुभव हीनता थी उसका फायदा सूबे के मंझे और खेले खाए अधिकारियों द्वारा उठाया गया। नौकरशाह न सिर्फ नेताओं को अपनी उंगलियों पर नचाते रहे बल्कि मनमाने तरीके से काम करना उनकी आदत बना रहा। नतीजा सूबे में अविराम भ्रष्टाचार की गंगा बहती रही। भ्रष्टाचार का मुद्दा हर चुनावों में चुनावी मुद्दा रहा है और दल तथा नेता इसका लाभ उठाते रहे हैं। सूबे के घोटालों के नाम गिनाए जाए तो यह बेमानी बात होगी बस इतना समझ लेना ही काफी है कि इससे न तो भाजपा अछूती है और न ही कांग्रेस और उसके नेता। सूबे में अब तक एनएच घोटाला, खाघान्न घोटाला, कुंभ घोटाला, और तो और अभी हरिद्वार में कोरोना टेस्टिंग घोटाला भी सामने आया था। अभी कुछ दिन पूर्व भ्रष्टाचार के मामलों में वर्तमान सरकार द्वारा एक आईएएस अधिकारी को जेल भेजा गया है। दरअसल उत्तराखंड राज्य में भ्रष्टाचार पर एक दूसरे की घेराबंदी करने वाले यह सभी दल और नेता जानते हैं कि यहां दूध का धुला कोई नहीं है कोई किसी पर एक आरोप लगाता है तो उसका जवाब कैसे दिया जाता है जैसे कांग्रेस के नेता इन दिनों परीक्षा भर्ती घोटाले में कुछ और सफेदपोशों व अधिकारियों पर इस मामले में संलिप्त होने आरोप लगा रहे हैं और सरकार की घेराबंदी कर रहे हैं। इन तमाम आरोप—प्रत्यारोप से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने लोकायुक्त बिल लाकर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की पहली पहल की थी लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ इसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया जिसका नतीजा है आज सालों बाद भी राज्य में लोकायुक्त का गठन नहीं हो पाया है। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दूसरी बार सत्ता संभालते ही भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस के तहत अब भ्रष्टाचार में संलिप्त अधिकारियों व नेताओं पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। राज्य के इस सबसे बड़े मुद्दे पर लगाम कैसे लगाई जाए इस पर सही चिंतन मंथन और उस पर अमल होना जरूरी है।