यात्रियों की सुरक्षा का सवाल

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उत्तराखंड का मौसम चारधाम यात्रियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है यात्रा को शुरू हुए अभी एक माह का समय भी नहीं हुआ है लेकिन 90 से अधिक यात्रियों की चार धामों में मौत हो चुकी है। इनमें से 60 से अधिक लोगों की मौत हार्ड अटैक के कारण हुई है। मई और जून का समय चारधाम यात्रा के लिए सबसे अधिक मुफीद माना जाता था लेकिन इस साल मौसम में आए अप्रत्याशित बदलाव के कारण मई के माह में जिस तरह से बारिश और बर्फबारी हुई है वह यात्रियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत साबित हो रही है। यात्रा पर आने वाले लोग यह अनुमान भी नहीं लगा पाते हैं कि धामों में इस वक्त कितनी सर्दी होगी। अधिकांश यात्रियों द्वारा गर्म कपड़े भी नहीं लाए जाते हैं। जहां तक धामों में इन यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था की बात है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। हर एक धाम में क्षमता से कई हजार अधिक यात्री पहुंच रहे हैं जिन्हें शुन्य डिग्री तापमान में रहना पड़ रहा है। 35 से 40 डिग्री तापमान से शुन्य डिग्री तापमान में पहुंचने वाले इन यात्रियों का शरीर इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है तथा अत्यधिक ऊंचाई के कारण ऑक्सीजन की जो कमी होती है वह यात्रियों की सांसो पर भारी पड़ रही है। भले ही राज्य सरकार द्वारा इन यात्रियों को काफी हद तक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही हो लेकिन फिर भी हर यात्री को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण हर रोज बड़ी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ रही है बीते कल केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में 13 लोगों की मौत हार्ड अटैक या सांस लेने में दिक्कत के कारण हुई। इससे एक दिन पहले 7 लोगों की मौत हुई थी। यात्रा को शुरू हुए 23 दिन बीते हैं और मौतों का आंकड़ा 100 के पास पहुंच गया है। हालात यह है कि धामोंं के पड़ावों और धामों में जरूरत पड़ने पर यात्रियों को गर्म कपड़े भी नहीं मिल पा रहे हैं। यात्रियों से बार—बार यह अपील की जा रही है कि वह पर्याप्त गर्म कपड़े लेकर ही यात्रा पर आए और कमजोर स्वास्थ्य या किसी बीमारी से पीड़ित यात्री यात्रा पर न आए लेकिन यात्री भी इस पर गौर नहीं कर रहे हैं। हालात यह है कि स्वास्थ्य परीक्षण के बाद जिन्हें यात्रा से रोका जा रहा है वह भी रुकने को तैयार नहीं है। 2210 लोगों में से 201 यात्री अनफिट पाए गए लेकिन इनमें से फिर भी एक ही यात्री वापस लौटा जबकि 200 यात्री अपने रिस्क पर यात्रा में चले गए। इसलिए इस जांच का कोई लाभ नहीं हो पा रहा है। जब तक यात्री इस तरफ ध्यान नहीं देंगे, सरकार चाहे जितने भी इंतजाम कर ले इन मौतों को रोका नहीं जा सकता है। यह स्वाभाविक है कि यात्रा पर आए लोगों की जो अपने घर परिवार से सैकड़ों और हजारों मील दूर है मौत होना एक बड़ा संवेदनशील और दुखद मुद्दा है। लेकिन आस्था के आगे मौत का डर भी इन यात्रियों को नहीं रोक पा रहा है जो गलत है। अच्छा हो कि यात्री अपनी जान की सुरक्षा को लेकर खुद सतर्कता बरतें।

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