भ्रष्टाचार पर बात, लोकायुक्त पर खामोशी

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उत्तराखंड की सियासत में इन दिनों भ्रष्टाचार का मुद्दा फिर एक बार चर्चाओं के केंद्र में है। सहकारी बैंकों में अवैध तरीके से की गई भर्तियों के खुलासे के कारण चर्चाओं में आए इस मुद्दे को लेकर बीते कल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का एक बयान आया है उन्होंने कहा है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, चाहे वह कितने भी बड़े ओहदे पर क्यों न हो? उनका यह बयान स्वागत योग्य है उनके बयान से ऐसा जरूर लगता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वह संजीता हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सिर्फ बड़े—बड़े दावे और अच्छी—अच्छी बातें ही कही जाती रहेगी या फिर सरकार भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी कुछ पहल करेगी? भ्रष्टाचार को प्रभावी तरीके से रोकने के जो लोकायुक्त और लोकपाल का सुझाव अन्ना हजारे द्वारा सुझाया गया था उसे राज्य में आज तक प्रभावी ढंग से लागू क्यों नहीं किया? मुख्यमंत्री धामी और उनकी सरकार इस दिशा में भी क्या कुछ करेगी? इस पर धामी क्यों खामोश हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कल अपने ट्विटर हैंडल से कहा है कि तू भी अन्ना मैं भी अन्ना और मिलकर चूसेे गन्ना। भ्रष्टाचार को लेकर अब तक सरकारों का जो रवैया रहा है वह वास्तव में इसी तरह का रहा है। सब भ्रष्टाचार का गन्ना चूसने में मस्त हैं। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत जो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस को अपनी सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकता बताते थे और अपने पहले ही विधानसभा सत्र में लोकायुक्त गठन का प्रस्ताव लेकर आए थे उसका आज तक यह पता नहीं है कि वह प्रस्ताव कहां गया और उसका क्या हुआ? उससे भी बड़ी हैरानी की बात है कि वह जिस एनएच 74 के जमीन मुआवजे में हुए घोटाले की सीबीआई जांच कराना चाहते थे उस पर केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के एक घुड़की भरे पत्र के बाद न सिर्फ भ्रष्टाचार पर बात करना भी भूल गए थे बल्कि यह कहने पर मजबूर हो गए थे कि जब राज्य में भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है। धन्य है इस सूबे के नेता जिन्हें भ्रष्टाचार दिखना भी बंद हो जाता है खासतौर से तब जब वह कुर्सी पर होते हैं। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुआ तुम कुम्भ टेंस्टिंग घोटाला या सहकारी बैंक भर्ती घोटाला क्या घोटाला नहीं है। अच्छा हो इस सूबे के नेता भ्रष्टाचार पर बड़ी—बड़ी बातें करने की बजाय इस मुद्दे पर विचार करें कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उन्हें क्या करना है? लेकिन इस तरह की उम्मीद सत्ता में बैठे लोगों से किया जाना बेमानी ही है क्योंकि वह इसे लेकर न पहले कभी गंभीर थे और ना आज हैं।

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