- डिपार्टमेंटल स्टोर से शराब की बिक्री, कड़ा विरोध का मुद्दा
देहरादून। सरकार एक तरफ देवभूमि को नशा मुक्त बनाने के दावे करती है वहीं दूसरी तरफ राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उन्हें तमाम अच्छी से अच्छी ब्रांड की शराब उपलब्ध कराने की कोशिशें में जुटी है। जो दो नाव की सवारी करने जैसा ही है। सरकार की इस दोहरी नीति के कारण आए दिन स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन देखे जा रहे हैं।
दून मसूरी मार्ग पर भटृा गांव में बने आधुनिक डिपार्टमेंट स्टोर में शराब के ठेके को लेकर स्थानीय लोगों द्वारा जो विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है वह तो सिर्फ एक बानगी भर है। अभी कुछ समय पहले ऋषिकेश जो चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है वहां भी डिपार्टमेंटल स्टोर से शराब बेचे जाने को लेकर स्थानीय लोगों ने ऐसा ही विरोध प्रदर्शन किया था। आबकारी विभाग का कहना है कि यह कोई सामान्य शराब ठेके की तरह नहीं है यहां सिर्फ उम्दा किस्म की विदेशी और महंगी शराब की बिक्री ही की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि राज्य में सरकार द्वारा जिस तरह से शराब की बिक्री को बढ़ावा दिया जा रहा है उसका विरोध स्वाभाविक है। अभी राजधानी दून के बालावाला और प्रेमनगर क्षेत्र में स्थानीय लोगों द्वारा शराब की नई दुकानों का विरोध किया गया था। देखा यह जा रहा है कि सरकार एक तरफ उत्तराखंड को गोवा की तरह पर्यटन राज्य बनाना चाहती है वहीं दूसरी ओर धार्मिक पर्यटन राज्य, जहां किसी तरह का नशा न हो जो संभव नहीं है। गोवा में हर 21 व्यक्ति पर एक शराब की दुकान है अगर उत्तराखंड को गोवा बनाना है तो फिर बहने दो शराब की गंगा और योग तथा अध्यात्म की राजधानी बनाना है तो फिर शराब पर पूर्ण पाबंदी लगा देनी चाहिए।
यह बड़ी अजीब बात है शराब तो शराब ही है वह देसी हो या विदेशी महंगी हो या सस्ती। अभी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में राज्य में वैनों से शराब की बिक्री शुरू की गई थी। सरकार को अगर यही करना है तो फिर उसे खुलकर सामने आना चाहिए। राज्य के ठेके ही क्या सभी होटल, रेस्टोरेंट और होमस्टे ही नहीं निजी दुकानों तक में शराब की खुली बिक्री करनी चाहिए। सरकार के अंदर इतना साहस तो हो नहीं सकता है कि बिहार की तरह राज्य में पूरी तरह से शराब की बिक्री पर रोक लगा दें। ऐसी स्थिति में उसे देवभूमि को नशा मुक्त बनाने की बातें भी नहीं करनी चाहिए।
नेपाल और भूटान की तर्ज पर चुनी हुई दुकानों पर और घर—घर से शराब की बिक्री कराने की ओर बढ़ रही सरकार को अपनी आबकारी नीति को सुस्पष्ट बनाने की जरूरत है।