सामाजिक सरोकारों से विरत राजनीति

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देश के 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को 2024 के आम चुनावों के लिहाज से अत्यंत ही महत्व का माना जा रहा है खास बात यह है कि सत्ता के संग्राम में सब कुछ दिख रहा है, अगर कुछ नहीं दिख रहा है तो वह जनता के मुद्दे है। बीते कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर अपने मन की बात कहने के लिए देश की जनता के सामने और भ्रष्टाचार को देश की अहम समस्या बताकर कहते दिखे कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खा रहा है। सवाल यह है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते 7 साल से सत्ता में है उन्होंने इस भ्रष्टाचार पर कितनी लगाम लगाई या प्रयास किए। भाजपा केंद्रीय सत्ता पर तो काबिज है ही देश के 70 फीसदी प्रांतों में उसकी सरकारें हैं। उदाहरण के तौर पर अगर उत्तराखंड की ही बात करें तो भाजपा की वर्तमान सरकार ने जब त्रिवेंद्र सिंह के नेतृत्व में सत्ता संभाली थी तो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की घोषणा की थी लेकिन अपने पहले ही सत्र में लोकायुक्त विधेयक पेश करने वाली यह सरकार 5 साल में भी लोकायुक्त का गठन नहीं कर सकी है। भ्रष्टाचार को रोकने के प्रति भाजपा व उसकी सरकारें और नेता कितने संवेदनशील है? क्या इससे बेहतर उदाहरण और कुछ हो सकता है। देश में बढ़ती बेरोजगारी ने सभी सीमाएं तोड़ दी है अगर कहीं कोई एक रिक्त पद होता है तो उसके लिए एक लाख से अधिक बेरोजगार लाइन में खड़े दिखाई देते हैं। लेकिन 4 करोड़ सालाना रोजगार का वायदा करने वाले या तो इन बेरोजगारों का यह कहकर उपहार बनाते नजर आते हैं कि पकौड़े तलना और बेचना भी रोजगार है या फिर कोरोना के सर इसका ठीकरा फोड़ कर अपना पल्ला झाड़ते नजर आते हैं। बात अगर बढ़ती महंगाई की हो तो इसकी पीड़ा को सिर्फ वह जान सकते हैं जो रोज कमा कर खाने वाले हैं। देश की आबादी इस बढ़ती महंगाई के कारण अपना पेट भी ठीक से नहीं भर पा रहे है। देश में बात तो गरीबी मिटाने और आत्मनिर्भर भारत की होती है लेकिन देश में बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई के कारण बढ़ती गरीबों की संख्या पर कोई भी आज बात करने को तैयार नहीं है देश में स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा व्यवस्था की क्या स्थिति है? उसका सच स्वीकार करने को कोई भी तैयार नहीं है। यह हैरान करने वाली बात है जो सत्ता में बैठे हैं उनकी तो यह कोशिश है ही की जाति, धर्म और संाप्रदायिक मुद्दों पर इतना शोर मचाए की कोई सामाजिक सरोकार के मुद्दे के बारे में सोच भी न सके। विपक्ष भी जनता के इन जिंदगी और मौत से जुड़े मुद्दों को न उठाए जाने को तैयार है न इन मुद्दों पर चुनाव मैदान में जाने को तैयार है। विपक्ष भी राष्ट्रभक्ति और धर्म तथा सांप्रदायिक मुद्दों का सामना करने में इस तरह उलझ गया है कि वह हिंदू—मुस्लिम, जिन्ना—पाकिस्तान, धर्म—संसद, हिंदू राष्ट्र और मंडल—कमंडल पर अटक कर रह गया है। इसके बाद कुछ है तो वह मुफ्त की राजनीति है। जिसमें राशन फ्री, बिजली फ्री, मोबाइल, स्कूटी, लैपटॉप सब कुछ फ्री देकर वोट बटोरने की सियासत है। ऐसे में जब देश के नेता और राजनीतिक, सामाजिक सरोकारों पर सोचना बंद कर देते हैं तब देश की जनता को सोचने के लिए तैयार होना चाहिए इस दृष्टिकोण से यह पांच राज्यों के चुनाव ही नहीं 2024 का आम चुनाव भी बहुत अहम रहने वाला है।

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