मुफ्त वाली राजनीति बड़ा खतरा

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एक दशक पूर्व तक किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि देश की राजनीति में एक ऐसा भी दौर आएगा जब आम आदमी के वोट की कीमत इतनी अधिक हो जाएगी कि तमाम राजनीतिक दल वोट के लिए सब कुछ मुफ्त में देने को तत्पर दिखाई देंगे। देश की राजनीति में भले ही यह मुफ्त का फॉर्मूला आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इजाद किया हो लेकिन इस प्रभावकारी फार्मूले का असर देखिये कि आज तमाम राजनीतिक दलों में आम आदमी को सब कुछ मुफ्त में देने की होड़ लगी हुई है। भाजपा जैसे दल जो स्वयं को देश ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी मानते हैं उसके नेताओं को अब मुफ्त की सौगातों की झड़ी लगानी पड़ रही है, जो कल तक किसी को भी मुफ्त में कुछ भी न देने की बात करते थे। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनके घोषणा पत्रों पर अगर गौर करें तो सभी दल इस दौड़ और होड़ में एक दूसरे को पछाड़ने पर आमादा दिखाई देते हैं। केजी से पीजी तक की छात्राओं को शिक्षा मुफ्त, स्कूली बच्चों को किताबें, ड्रेस और स्कूल बैग तथा जूते मुफ्त, छात्राओं को साइकिल और स्कूटी, छात्रों को मोबाइल और लैपटॉप सब कुछ मुफ्त। बीपीएल परिवारों को कहीं दो तो कहीं तीन गैस सिलेंडर मुफ्त, सभी महिलाओं को 1000 रूपये महीना भी मुफ्त, बेरोजगारों को घर बैठे तीन हजार से पांच हजार रूपये तक हर माह मुफ्त, किसानों को 6000 से लेकर 12000 तक मुफ्त, मजदूरों को पेंशन मुत्तQ 5 लाख का बीमा मुफ्त, 5 लाख तक इलाज मुफ्त, बिजली—पानी मुफ्त और तो और राशन भी मुफ्त, जिस पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर हंगामा मचा हुआ है अब यह मुफ्त देने की बात कुछ दलों द्वारा की जा रही है भले ही अभी वह दो पहिया वाहन वालों को एक—दो लीटर ही क्यों न सही दें लेकिन शुरुआत हो चुकी है। कुछ राजनीतिक पार्टियों द्वारा महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा का आफर भी दिया गया है तो तमाम दल अब बड़े बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थ यात्रा या 10 हजार तक की सब्सिडी का भी ऐलान कर रहे हैं। धन्य है केजरीवाल जो यह कहते हैं यह मुफ्त का फार्मूला उन्हें ही आता है बाकी तो सब उनकी नकल करने में लगे हैं, फॉर्मूला किसी को नहीं पता। वाकई राजनीति में वर्तमान में जो मुफ्त का यह फार्मूला आया है उसे लेकर तो देश के अर्थशास्त्री भी हैरान है उनकी भी समझ में नहीं आ रहा है कि इन मुफ्त की सौगातोंं के लिए धन कहां से आएगा? लोगों में इस बात की भी चर्चा है कि सत्ता में क्या ऐसा कुछ खास है कि जिसे पाने के लिए यह दल सब कुछ मुफ्त देने को तैयार हैं। कुछ कह रहे हैं कि यह देश के आम आदमी को गरीब और निकम्मा बनाए रखने का सरकारी षड्यंत्र है। राजनीतिक दल जनता को भिखारी बनाए रखकर उस पर अपना शासन बनाए रखना चाहते हैं। कहा कुछ भी जाए लेकिन आम आदमी इस दौर में मुफ्त की सौगातों का लुत्फ खूब ले रहा है। भाजपा जिसने मंदिर—मस्जिद की राजनीति के जरिए सभी दलों के नेताओं को मंदिरों में माथा टेकना सिखा दिया और आप जिसने सभी दलों को मुफ्त की सुविधाएं देने पर मजबूर कर दिया दोनों ही धन्य हैं। जिन्होंने अपने बेजोड़ राजनीति के फंडों से सभी दलों को हासिए से बाहर धकेल दिया है लेकिन यह सवाल अभी भी सवाल ही बना हुआ है कि आखिर इसका अंत कहां होगा।

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