जनादेश के पीछे का संकेत

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पांच राज्यों के चुनावी नतीजे सिर्फ यह तय करने तक सीमित नहीं है कि कहां कौन हारा और कौन जीता या किस राज्य में किसकी सरकार बनी या चली गई। इन नतीजों में देश की भावी राजनीति के अनेक संकेत छिपे हुए हैं। उत्तराखंड की 20 साल की राजनीति में यह पहली बार हुआ है जब किसी दल ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर सत्ता हासिल की हो, वही उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी 37 साल बाद ऐसा हुआ है जब जनता ने किसी दल को लगातार दूसरी बार सत्ता में बने रहने का जनादेश दिया हो। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार थी वह भी प्रचंड बहुमत वाली लेकिन जितने बड़े बहुमत के साथ भाजपा इन दोनों राज्यों में दोबारा सत्ता में आई है वह भाजपा की सर्व ग्राह्यता को बताने के लिए काफी है। अब उसकी राजनीति सिर्फ धर्म और आस्था पर आधारित न रहकर उससे आगे सबका साथ और सबका विकास की ओर कदम बढ़ा चुकी है। 7 साल केंद्रीय सत्ता में रहकर भाजपा ने अपनी डायरेक्ट बेनिफिट की तमाम योजनाओं के जरिए हर वर्ग को अपने साथ न सिर्फ जोड़ लिया है बल्कि यह हर तबके के लोगों को सोचने पर विवश कर दिया है कि मोदी की सरकार उनके लिए कुछ न कुछ कर तो रही है पहली वाली किसी सरकारों ने तो किसी के लिए कुछ किया ही नहीं था। उत्तर प्रदेश में इस बार बसपा को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है तथा कांग्रेस 2 सीटें जीत सकी है। ऐसी स्थिति में इन दोनों दलों के नेताओं को यह जरूर सोचना चाहिए कि वह अब कैसे राष्ट्रीय दल हो गए हैं। 2007 में जिस बसपा ने 206 सीटों पर जीत हासिल कर मायावती ने अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी वह बीते दो दशक से शून्य हो जाती है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह और मायावती ने जिस जाति राजनीति के ध्रुवीकरण का किला तैयार कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी थी वह किला अब पूरी तरह से नेस्ताबूत हो चुका है। इसका एहसास अब मायावती और अखिलेश यादव को हो चुका होगा जो विगत दो चुनावों में अपनी ताकत के सभी तीरों को आजमा चुके हैं। बीते कल प्रधानमंत्री ने चुनाव परिणाम के बाद देश में भ्रष्टाचार व परिवार वादी राजनीति पर बहुत कुछ ऐसा कहा कि जो किसी भी राजनीतिक दल को बहुत चुभने वाला हो सकता है लेकिन सच यही है कि राष्ट्र किसी परिवार से नहीं चलता और न राष्ट्र की राजनीति परिवारवाद से चलनी चाहिए। देश से लेकर तमाम राज्यों की राजनीति पर परिवार वादियों का कब्जा और काला पीला कुछ भी करने की प्रवृत्ति की राजनीति का अब अंत लाजमी हो गया है। कांग्रेस, सपा, बसपा ही नहीं अन्य तमाम दलों के नेताओं को अब इस पर गहन चिंतन मंथन की जरूरत है। धर्म जाति और परिवार वादी राजनीति अब अपने अंत की ओर बढ़ चली है। देश के तमाम राजनीतिक दलों को इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है कि जिन लोगों ने अपने जीवन काल की सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना के रूप में देखी हो मां गंगा में लाशों को तैरते और धधकते शमशान देखें, महंगाई का वह चरम देखें जब 50 रूपये किलो आलू और 100 रूपये लीटर पेट्रोल खरीदा। नोटबंदी का वह दौर देखा जब न जेब में नोट रहा न घर में आटा व दवाओं के पैसे, बेरोजगारी से हाहाकार मचा है। जीएसटी लोगों का दम निकाल रहा है। गरीब और गरीब हो रहा है फिर भी देश की जनता भाजपा को ही क्यों सत्ता में बनाए रखना चाहती है? विपक्षी दल जब तक इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पाएगा तब तक वह कभी भाजपा को नहीं हरा पाएंगे। साथ ही पंजाब में आम आदमी पार्टी के धमाकेदार जीत का रहस्य क्या है यह भी विपक्षी दलों के लिए चिंतनीय है।

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