दो दिन पूर्व बाजपुर में पूर्व काबीना मंत्री यशपाल आर्य और उनके बेटे के काफिले पर हुए हमले से यह समझा जा सकता है कि सूबे की राजनीति किस तरह से धीरे—धीरे अपराधीकरण की ओर अग्रसर हो रही है। भले ही सूबे के नेता अपनी देव संस्कृति की दुहाईयंा देते हुए न थकते हो लेकिन राज्य बनने के बाद सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बढ़ती आपराधिक वारदातों से यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि अब वह दिन दूर नहीं है जब उत्तर प्रदेश और बिहार तथा उत्तराखंड की राजनीति में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। यशपाल आर्य और उनके बेटे के काफिले पर हमला किसने किया वह कांग्रेसी है या भाजपाई यह दीगर बात है लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि पर अगर इस तरह के हमले हो सकते है तो वह नेताओं और राजनीति की उस मनोवृति का प्रतीक है जो दूसरों को डराने धमकाने की राजनीति ही है। इस मामले का सच भले ही जांच के बाद सामने आ सकेगा लेकिन अभी भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करने पर तुले हुए हैं। राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच मारपीट और गोलाबारी कि अब तक कई वारदातें बीते सालों में सामने आ चुकी हैं। यह संघर्ष एक ही दल या पार्टी के नेताओं के बीच और अलग—अलग दलों के नेताओं के बीच भी देखा जाता रहा है लेकिन जिस तरह से इन वारदातों को हल्के में लिया जा रहा है उसके परिणाम स्वरुप ही इन्हें बढ़ावा भी मिल रहा है। अपराधीकरण की प्रवृत्ति से उत्तराखंड की राजनीति भी अछूती नहीं है। भाजपा और कांग्रेस में तमाम अपराधी प्रवृत्ति के नेता मौजूद है जिन पर हत्या, डकैती और दुराचार तथा भ्रष्टाचार के मामले अदालतों में चल रहे हैं। जहां तक बीते दिनों यशपाल आर्य के काफिले पर हमले की बात है इस मामले में दोनों ही पक्षों द्वारा पुलिस में एफआईआर कराई जा चुकी है। कांग्रेस आरोपियों की गिरफ्तारी को लेकर सीएम आवास घेराव से लेकर पूरे प्रदेश में प्रदर्शन कर रही है। वहीं भाजपा इसी कांग्रेस की आंतरिक रंजिश बताकर इससे पल्ला झाड़ रही है। कांग्रेस के प्रदर्शन में हरीश रावत से लेकर तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी भी यही बता रही है कि वह एक है। हरीश रावत का तो यहां तक कहना है कि अगर हमले में कांग्रेसी शामिल है तो उस पर भी कार्रवाई हो। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले यशपाल आर्य अभी कुछ माह पूर्व ही फिर कांग्रेस में वापस लौटे हैं। सूबे में नेताओं के इधर—उधर आने जाने से कई सीटों के ही नहीं अपितु दलों के राजनीतिक समीकरण भी उलट—पुलट हो रहे हैं। इन्हीं राजनीतिक हितों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच टकराव व तकरार भी इस हमले का एक कारण हो सकता है लेकिन सूबे की राजनीति अगर इसी तरह रक्त रंजित होती रहेगी तो यह टकराव आने वाले दिनों में और भी अधिक बढ़ेगा ही। जो राज्य की राजनीति के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है।