समय के साथ समाज की स्थितियों और परिस्थितियों तथा सच में भी बड़ा बदलाव आता है। नियम कानून, रीति रिवाज और परंपराओं में परिवर्तन होता है। तथा परिवर्तन समय का सापेक्ष गुण भी है। बीते कल देश के आपराधिक कानूनो को बदल दिया गया है। कोई भी बदलाव हमेशा अच्छा या बुरा नहीं हो सकता। लेकिन सकारात्मक बदलाव ही समाज के बेहतर विकास का आधार बन सकता है। सरकार द्वारा जो तीन नए आपराधिक कानून लाए गए हैं उन्हें लेकर कई तरह की शंकाएं आशंकाएं हो सकती है लेकिन यह बदलाव कितने कारगर सिद्ध होते हैं इसका फैसला आने वाला समय ही करेगा। इन कानूनों से समाज में आपराधिक मामलों को कितना कम किया जा सकता है तथा आम आदमी को न्याय दिला पाने में यह कानून कितने प्रभावी साबित होते हैं? यह सबसे अहम सवाल है। इन नए कानूनो के मुताबिक अब पीड़ित पक्ष अपनी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकेगा। देश में जीरो एफआईआर की व्यवस्था तो बहुत पहले से ही लागू है। एक आम नागरिक की सबसे बड़ी समस्या यही थी कि पुलिस उसकी शिकायत दर्ज करने में मनमानी करती थी। लोग थाने व चौकी के चक्कर लगाकर थक जाते थे फिर भी पुलिस उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होती थी लेकिन अब वह ऑनलाइन अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे। एक तय समय सीमा मैं उन्हें एफआईआर लिखने से लेकर चार्ज शीट तक तैयार करनी होगी। किसी व्यक्ति को एक समन या नोटिस तामील कराने के लिए उसे ढूंढना मुश्किल हो जाता था। लेकिन अब पुलिस को भी इसके लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। वह एस एम एस और ईमेल के जरिए यह काम कर सकेगी। पुलिस द्वारा रात के अंधेरे में छापेमारी और तलाशी की जो कार्रवाई की जाती थी उसकी तथा कुर्की और जब्ती की भी वीडियो ग्राफी अनिवार्य रूप से करनी होगी। यही नहीं पीड़ित को न्याय पाने के लिए कई कई साल तक अब कोर्ट के चक्कर नहीं काटने होंगे। यानी न्यायपालिका को तारीख पर तारीख और न्याय न मिल पाने की अवधारणा से भी यह नए कानून मुक्ति दिलाएंगे तथा एक तय समय सीमा में हर एक मुकदमे का निस्तारण करना होगा। देखने सुनने में यह सब भले ही बहुत अच्छा लग रहा हो लेकिन इसे व्यावहारिक रूप से धरातल पर उतारने में तमाम तरह की दिक्कत इन भी है। इन कानूनों को सरकार द्वारा बिना किसी तैयारी के ही लागू कर दिया गया है। आमतौर पर पुलिस विभाग के पास अत्याधुनिक संसाधनों की कमी की बात हम सभी ने सुनी है हमारे कितने थाने और चौकी इन नए कानूनो के लिए पर्याप्त सुविधाओं से लैस है? यही सवाल नहीं है पुलिस कर्मियों को अब किस तरह की कार्य पद्धति के साथ काम करना है क्या इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया है? तमाम ऐसे सवाल है जो व्यावहारिक दिक्कतें पेश करने वाले हैं। हमारे न्यायालयों मैं जजों की संख्या का कम होना भी एक बड़ी मुश्किल है। आज के हालात पर गौर करें तो वादी प्रतिवादी तारीख पर कोर्ट जाते हैं और पता चलता है कि आज जज साहब नहीं बैठेंगे? और मुंशी उन्हें अगली तारीख देकर घर भेज देते हैं। इन नए कानून का सारा दारोमदार डिजिटल सिस्टम पर आधारित है लेकिन देश के दूर दराज वाले क्षेत्रों में कनेक्टिविटी की ही नहीं अन्य तमाम तरह की समस्याएं भी हैं ऐसे में यह कानून बनाने या लागू करने का क्या लाभ होगा। इन कानून को कितने प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है इस पर ही इसकी सफलता असफलता निर्भर करेगी।