जनता की जीत

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लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। देश में एक बार फिर मोदी सरकार बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेता इस कामयाबी पर खुश हो सकते हैं और होना भी चाहिए क्योंकि इस जीत की हैट्रिक के साथ ही वह स्व. पंडित नेहरू की बराबरी पर जाकर खड़े हो जाएंगे जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे। कल इस चुनाव परिणाम के बाद प्रधानमंत्री ने जिस अंदाज में यह बात कही कि विपक्ष मिलकर भी उतनी सीटें नहीं जीत सका जितनी अकेले भाजपा को मिली है यह समझ से परे है कि इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री इतने अधिक इतरा क्यों रहे हैं क्या उन्होंने खुद इतने बड़े मतांतर से जीत दर्ज की है कि जो पहले किसी प्रधानमंत्री ने नहीं की। या फिर उन्होंने जो अबकी बार 400 पार का नारा दिया था उससे भी कहीं अधिक सीटें जीतकर दिखा दी हैं। या फिर उन्होंने इस बार भाजपा 370 का जो नारा दिया था वह सच साबित हुआ है। उनके पांच—पांच मंत्रियों को इस चुनाव में हार का सामना उस यूपी में करना पड़ा है जिससे होकर दिल्ली दरबार का रास्ता जाने की बात कही जाती है। उत्तर प्रदेश की जिस 80 सीटों में से 80 जीतने का वह दावा कर रहे थे वहां उन्हें आधी सीटें भी नहीं मिल सकी हैं। उनकी भाजपा को इस चुनाव में जनता ने उस काबिल भी नहीं छोड़ा है कि वह अपने बूते अपनी सरकार बना पाए। वह बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों के आंकड़े से लगभग 35 सीटें पीछे हैं। यह ठीक है कि जो जीता वही सिकंदर कहलाता है भाजपा को एक राजनीतिक दल के रूप में सबसे अधिक सीटें मिली है और अपने गठबंधन के सहयोगियों से वह बहुमत के अंक से 20 के अधिक आसपास अधिक सीटों के साथ सरकार बनाने की स्थिति प्राप्त करने में सफल हो चुके हैं। लेकिन हम इस जीत को जनता की जीत बता रहे हैं। क्योंकि इस बार देश की जनता ने एक ऐसा जनादेश दिया है जिसमें सत्ता में बैठा कोई भी दल व नेता तानाशाही नहीं कर सकता है। संविधान और लोकतंत्र के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता और अगर करेगा भी तो उसे रोकने की ताकत उसके सहयोगी दलों और विपक्ष के पास निहित होगी वह उसे मनमानी नहीं करने देंगे। उनके पास सरकार को गिराने की ताकत भी होगी और बिना चुनाव देशभर में नई सरकार बनाने की क्षमता भी होगी। इस चुनाव की सबसे बड़ी उपलब्धि अगर कुछ है तो यह है कि 10 साल तक केंद्रीय सत्ता में बैठी जिस सरकार का मंसूबा यह था कि वह संसद को विपक्ष विहीन बनाने का मंसूबा पाले बैठा था जनता ने उसके उन मंसूबों पर पानी फेर दिया है और जनता ने एक मजबूत विपक्ष को संसद में बैठा दिया है जो लोकतंत्र के जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की तरह महत्वपूर्ण है। इसलिए हम कह रहे हैं कि यह मोदी या भाजपा की जीत नहीं लोकतंत्र और संविधान की जीत है। 2024 के चुनाव के बाद भाजपा जिन दो सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनाने जा रही है वह नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू है। जिनके पास अब एक के 15 व दूसरे के पास 16 सीटें हैं। और एनडीए सरकार से इन 31 सीटों के कम होने का मतलब होता है सरकार का अस्तित्व समाप्त। क्योंकि एनडीए के पास बहुमत से सिर्फ 20—21 सीटें ही अधिक है। इस जीत को हम जनता की जीत इसलिए भी बता रहे हैं कि क्योंकि जनता ने भाजपा के उन घमंडी नेताओं के घमंड को चूर—चूर कर दिया है जो यह माने बैठे थे कि उन्हें अब कोई हरा नहीं सकता और सत्ता से हटा नहीं सकता है। भाजपा के नेता जो कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते थे उन्हें अपने इन विचारों और सोच पर फिर से मंथन करने की जरूरत है और वह लाख प्रयासों के बाद भी लोकतंत्र मुक्त नहीं कर सकते हैं। और न संसद को विपक्ष मुक्त बना सकते हैं। भाजपा से भी कहीं बड़ी—बड़ी जीत कांग्रेस के हिस्से में है। इसलिए समूचे विपक्ष को दर्शक दीर्घा में बैठा देने की बातें करना शोभनीय नहीं कहा जा सकता है। मोदी के दो युवराजों ने इस चुनाव में यह बात अच्छे से समझा दी है।

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