लोकसभा चुनाव के 6 चरणों में 486 सीटों के लिए मतदान संपन्न हो चुका है। इसमें गुजरात के सूरत की एक वह सीट भी शामिल है जहां से भाजपा प्रत्याशी को निर्विरोध विजयी घोषित किया जा चुका है अब सिर्फ सातवेंं और अंतिम चरण का मतदान शेष बचा है जिसमें 57 सीटों के लिए 1 जून को मतदान होना है। वहीं तीन दिन बाद चुनाव प्रचार का शोर समाप्त हो जाएगा और इसके बाद 1 जून शाम से ही एग्जिट पोल के जरिए इस आने वाले चुनाव परिणामों के लिए डिबेट का दो दिवसीय दौर शुरू हो जाएगा तथा 4 जून दोपहर बाद तक चुनावी रुझान यह साफ कर देंगे कि अबकी बार किसकी सरकार? इसके लिए अब सिर्फ एक सप्ताह का इंतजार करना है। वर्तमान लोकसभा चुनाव के बारे में पहले ही दौर से यह कहा जा रहा है कि यह चुनाव 2014 व 19 जैसा चुनाव नहीं है। भले ही तब कम ही लोगों को ऐसा लग रहा था कि ऐसा इस चुनाव में क्या कुछ खास होने वाला है? लेकिन हर एक चरण के साथ आगे बढ़ते इस चुनाव में तस्वीर छठें चुनावी चरण आते—आते पूरी तरह से बदली हुई दिखने लगी। चुनाव से ऐन पूर्व अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद उत्तर से दक्षिण तक जो एक नई राम मंदिर लहर दिखाई दे रही थी और हिंदुत्व तथा विकसित भारत व विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का जो डंका बजता दिख रहा था वह इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के घोषणा पत्र के आने के साथ ही उसकी अनुगूंज मंद और मंद पड़ती चली गई। चुनाव के प्रारंभिक दौर से पहले ही इलेक्टोरल बांड पर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तो जैसे इस चुनाव की पूरी हवा को ही बदल कर रख दिया कांग्रेस जो बहुत पहले से पीएम मोदी से अडानी और अंबानी के रिश्तों को लेकर सवाल उठाती रही थी उसे तो जैसे अमोघ अस्त्र हाथ लग गया। सामाजिक न्याय के मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटी कांग्रेस ने गरीबी, बेरोजगारी व महंगाई के साथ भाजपा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ऐसा निशाने पर लिया कि पीएम से लेकर भाजपा के तमाम स्टार प्रचारक न्याय पत्र के प्रचार में ही उलझ कर रह गए। पहले चरण से ही ड्राइविंग सीट पर आई कांग्रेस के हमलावर तेवरों ने इंडिया गठबंधन को एकजुट तो कर ही दिया साथ ही कांग्रेस के नेतृत्व की स्वीकारिता भी सभी ने स्वीकार कर ली। भाजपा का चुनावी रथ एक बार पटरी से उतरा तो अंतिम चरण तक नहीं संभल सका इसकी बानगी खुद प्रधानमंत्री के भाषणों और उनकी भाषा श्ौली तक में साफ झलकने लगी। एनडीए नेताओं के चुनावी भाषण दिन ब दिन असल मुद्दो से दूर होते दिखे और वह लोगों के लिए हास्य व्यंग्य का मसाला बन गये। प्रधानमंत्री के मुंह से निकली किसी बात को प्रचार का सशक्त जरिया बना लेने वाले भाजपा नेता व कार्यकर्ता खुद यह देखकर हैरान देखे गए कि प्रधानमंत्री को ऐसा क्या हो गया है कि वह हर संबोधन में बहकी बहकी बातें करने लगे हैं। विपक्षी नेताओं ने अपनी चुनावी सभा में उनके बयानों को भी मुद्दा बनाना शुरू कर दिया। जिनके दम पर भाजपा को वह चुनौती देने लगे। भाजपा के पास धनबल और संगठन की जो ताकत है वह अब उसे इस चुनाव में सत्ता तक पहुंचा पाती है या नहीं इसका पता 4 जून को ही चल सकेगा। लेकिन कांग्रेस व इंडिया गठबंधन ने भाजपा के सामने सत्ता छीनने की चुनौती तो पेश कर ही दी है।