चौपट चारधाम यात्रा व्यवस्था

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उत्तराखंड का शासन—प्रशासन चार धाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों की रिकार्ड संख्या को लेकर भले ही फूले न समाते हो और इसे अपनी बड़ी उपलब्धियों में शुमार करते हो लेकिन इसमें शासन प्रशासन का कोई कमाल नहीं है जो काम शासन—प्रशासन को करना चाहिए उस काम में वह हमेशा ही फिस्सडी रहता है। अभी चारधाम यात्रा को शुरू हुए चार—पांच दिन भी नहीं हुए हैं लेकिन उसके सुरक्षित और सुगम यात्रा करने के दावों का दम निकल गया है। यात्रा शुरू होने के अगले ही दिन गंगोत्री—यमुनोत्री और केदार धाम में यात्रियों का क्या कुछ हाल हुआ और क्यों हुआ? तथा इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसके साक्ष्य जुटाने के लिए आपको ग्राउंड जीरो पर भी जाने की जरूरत नहीं है सिर्फ कुछ टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग और तस्वीरों को देखकर ही समझ में आ जाएगा कि शासन—प्रशासन कितनी बेहतरी से अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। पहले दिन गंगोत्री धाम के पैदल मार्ग पर 11—12 घंटे तक फंसे रहे इन यात्रियों की क्या दुर्दशा हुई और उन्हें क्या—क्या झेलना पड़ा? अपनी आप बीती वह टीवी पर बयान करते आपको दिख जाएंगे। यह यात्री उत्तराखंड के शासन—प्रशासन और चार धाम यात्रा की व्यवस्थाओं को लेकर जो कुछ भी कह रहे हैं वह सत्ता में बैठे लोगों और अधिकारियों के लिए न सिर्फ शर्म की बात है अपितु उसके लिए सोचनीय है क्योंकि इससे समूचे विश्व में उत्तराखंड की छवि खराब हो रही है तथा यात्रा पर आने वाले लोग ऐसे खराब अनुभव के साथ लौट कर जा रहे हैं कि दोबारा कभी उत्तराखंड का रुख करने की बात तक नहीं सोच सकते हैं। इस दौरान सात आठ यात्रियों की मौत भी हो चुकी है। हकीकत यह है कि उत्तराखंड शासन प्रशासन द्वारा यात्रा की तैयारियों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। अगर सही मायने में कुछ काम किया गया होता तो न हरिद्वार के ऑफलाइन पंजीकरण सेंटरों पर वह स्थिति पैदा होती कि लोग परेशान होकर बिना यात्रा किए ही वापस लौटते और गंगोत्री धाम की यात्रा को शुरू होते ही उन्हें रोकना न पड़ता। राज्य में जब गंगोत्री धाम में यात्री मर रहे हैं पंडा पुजारी प्रदर्शन कर रहे हैं और धाम में सन्नाटा पसरा है। वही उत्तरकाशी के साथ अन्य तमाम जगह रोके गये यात्री परेशान होकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं राज्य के मुखिया मुंबई में जुहू बीच पर बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे हैं। यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि पंजीकरण खुलते ही 26 लाख श्रद्धालुओं ने एक सप्ताह के अंदर ही रजिस्ट्रेशन कराया है तथा बीते साल रिकॉर्ड 56 लाख श्रद्धालु यात्रा पर आए थे जो एक रिकॉर्ड है। तथा इस साल बीते साल से भी अधिक भीड़ उमड़ रही है तथा पिछले साल से अधिक यात्री आएंगे। लेकिन उन व्यवस्थाओं का क्या जो इन यात्रियों के लिए न पीने का पानी मिल रहा है और न खाना मिल रहा है भीषण सर्दी की रातें वह खुले आसमान के नीचे गुजारने पर मजबूर है। यात्रा शुरू होने के बाद सड़क निर्माण का काम कराया जा रहा है और उसके लिए यात्रियों को 6—6 घंटे तक रोका जा रहा है। ऐसी स्थिति में जब जाम लगेगा तो यात्रियों की क्या हालत होगी? धामों में सीमित संख्या में यात्री एक दिन में पहुंचे अब इसका निर्धारण किया जाएगा। सवाल यह है कि क्या शासन—प्रशासन में बैठे लोगों को पहले इस समस्या की जानकारी नहीं थी? अगर थी तो फिर उन्होंने समय रहते ही व्यवस्थाओं को दुरुस्त क्यों नहीं किया। उत्तराखंड का शासन प्रशासन व्यवसायी और पंडा—पुजारी सब बस यही चाहते हैं कि करोड़ों यात्री आए धक्के खा परेशान हो और उन्हें हजारों करोड़ दे और वापस चले जाएं तथा उन्हें इसके लिए करना कुछ भी न पड़े। घटिया से घटिया सुविधा देकर अधिक से अधिक कमाई की मंशा रखने वालों को इन यात्रियों की परेशानियों के बारे में कुछ तो सोचने की जरूरत है।

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