चंपावत उपचुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया है। जहां तक मतदान प्रतिशत की बात है वह भले ही भाजपा की अपेक्षा से कुछ कम रहा हो लेकिन किसी भी उपचुनाव के दृष्टिकोण से काफी कुछ अच्छा रहा है। इस विधानसभा सीट पर पुल 96913 मतदाता हैं जिनमें से 61711 ने मतदान का प्रयोग किया जो 64 फीसदी से अधिक है अभी मार्च 2022 में जो चुनाव हुआ था उसमें मतदान प्रतिशत 66 फीसदी के करीब रहा था। भाजपा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह के लिए इस चुनाव का क्या महत्व है यह सभी जानते हैं यही कारण है उन्होंने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल किया है। मुख्यमंत्री धामी के साथ तमाम स्टार प्रचारकों ने प्रचार में जहां कोई कमी नहीं छोड़ी, तमाम रोड शो और रैलियों का सहारा लिया वहीं कांग्रेस ने कहा तो बहुत कुछ लेकिन धरातल पर दिखा बहुत कम। अंतर कलह और उपचुनाव की उदासीनता इसका बड़ा कारण रही। मार्च के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कैलाश गहतोड़ी 5 हजार से अधिक मतों से जीते थे, हो सकता है मुख्यमंत्री धामी इससे ज्यादा मतों से जीत जाए लेकिन ऐसा भी नहीं लगता है कि चुनाव पूरी तरह से एकतरफा रहा हो। कांग्रेस पर इस चुनावी जीत हार का कोई असर नहीं पड़ने वाला है लेकिन भाजपा हारने की स्थिति में अत्यधिक प्रभावित हो सकती है। यही कारण है कि सीएम कल मतदान के दिन भी शत प्रतिशत वोटिंग की अपील मतदाताओं से करते दिखे। खैर अब जो होना था हो चुका है। क्या होना है इसे आने वाली 3 जून की तारीख तय करेगी। अभी तक भाजपा चुनाव परिणाम को लेकर बिल्कुल ही निश्चिंत नजर आ रही है। सूबे में अब तक मुख्यमंत्रियों ने जितने भी चुनाव लड़े हैं किसी भी चुनाव में किसी मुख्यमंत्री को हार का सामना नहीं करना पड़ा है। यह भी भाजपा की निश्चिंतता का एक कारण है। राज्य की पहली निर्वाचित सरकार में मुखिया की जिम्मेदारी संभालने वाले एनडी तिवारी ने 2002 में रामनगर सीट से उपचुनाव लड़ा था तथा उनके बाद बीसी खंडूरी ने 2007 में धुमाकोट से चुनाव लड़ा वहीं 2012 में विजय बहुगुणा ने सितारगंज तथा 2014 में हरीश रावत ने धारचूला से चुनाव लड़ा था और कोई भी अपना चुनाव नहीं हारा था। अब धामी की बारी है यूं तो किसी भी चुनाव में कुछ भी अप्रत्याशित हो सकता है लेकिन चंपावत में हवा भाजपा और धामी के पक्ष में ही बहती दिख रही है। जब कोई मुख्यमंत्री बनने के बाद चुनाव लड़ता है तो जनता की आमतौर पर सोच यही रहती है कि वह उसके पक्ष में मतदान करती है क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अगर स्वयं मुख्यमंत्री करेंगे तो तेजी से क्षेत्र का विकास होगा और विकास कार्यों में समस्या कम आड़े आएगी। यह अलग बात है कि कुछ नेता चुनाव जीतने के बाद इसे भुला देते हैं। भाजपा ने वोट मांगा भी सीएम के नाम पर है और जनता ने वोट दिया भी सीएम के नाम पर ही है इसलिए 3 जून को सिर्फ यह पता चलना शेष है की जनता ने सीएम को कितने वोट दिए हैं।