उत्तराखंड सरकार इन दिनों राज्य स्थापना के रजत जयंती समारोह के आयोजनों में व्यस्त है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इन आयोजनों को भव्य और दिव्य बनाने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं इसमें कोई हर्ज नहीं है। राज्य का रजत जयंती वर्ष यादगार होना भी चाहिए क्योंकि राज्य के लोगों को यह राज्य कोई उपहार स्वरूप नहीं मिला है इसके लिए कई वर्षों का संघर्ष और तमाम तरह की कुर्बानियां राज्य वासियों ने दी है। अगर राज्य के नेता सिर्फ उन शहीदों के चित्रों पर फूल मालायें पहनाकर और हर साल यह कहकर कि हम उत्तराखंड को उनके सपनों का उत्तराखंड बनाएंगे? काम नहीं चल सकता है। सत्ता की जवाबदेही तय करने और 25 सालों में सरकारों ने क्या कुछ किया है? तथा राज्य की विधानसभा अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने में कितनी सफल रही हैं। इसके मूल्यांकन का भी अब समय आ गया है। बीते कल देश की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा इस अवसर पर आयोजित विशेष विधानसभा सत्र को संबोधित किया गया। राष्ट्रपति मुर्मू सूबे के विधानसभा सत्र को संबोधित करने वाली दूसरी राष्ट्रपति हैं इससे पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी स्वर्गीय पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उत्तराखंड विधानसभा को संबोधित कर चुके हैं। कल राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में न सिर्फ राज्य के स्वर्णिम भविष्य की तस्वीर खींचने का प्रयास किया गया अपितु अब तक सरकारों द्वारा किए गए कामों का भी मुक्त कंठ से सराहना करने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई। आशावादी होना अच्छा होता है लेकिन आशावादी होने का अर्थ सच से मुंह मोड़ना नहीं होना चाहिए। मीठा—मीठा, वाह—वाह तथा कड़वा—कड़वा, थू—थूू जैसे हालात उचित नहीं हो सकते। राष्ट्रपति मुर्मू ने राज्य के सभी संवेदनों को अपने अभिभाषण में छुआ जरूर लेकिन उनके पीछे के अर्धसत्य को सामने रखने से पूरा परहेज भी किया। राज्य के विधानसभा की कार्यवाही संचालन पर अगर एक नजर डाली जाए तो उत्तराखंड की विधानसभा कार्यवाही के दृष्टिकोण से सबसे कम समय चलने वाली विधानसभा है। अभी हाल ही में आई एसडीसी की रिपोर्ट के अनुसार 31 राज्यों की विधानसभा में कार्य दिवस औसतन 20 दिन प्रतिवर्ष और कार्य अवधि 7 घंटे बताई गई। जबकि उत्तराखंड की विधानसभा औसतन 10 दिन ही रही जबकि काम करने के घंटे भी 30 ही रहे। कहने का आशय है कि विधानसभा सत्र संचालन में उत्तराखंड 28 राज्यों में 22वें स्थान पर रहा। हम सभी जानते हैं कि राज्य की सरकार द्वारा विधानसभा सत्रों की औपचारिकताएं कैसे पूरी की जाती हैं और 17 अगर गैरसैंण में हो तो 3 दिन का सत्र एक डेढ़ दिन में यह कहते हुए समेट दिया जाता है कि बिजनेस नहीं है। राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा यूसीसी से लेकर लोकायुक्त तक 500 से अधिक विधेयक पारित होने की उपलब्धि तो बताई गई लेकिन लोकायुक्त गठन के उस सच को पूरी तरह छुपा लिया गया जिसके अनुसार 23 सितंबर 2013 से लेकर अब तक लोकायुक्त की कुर्सी खाली पड़ी है जबकि लोकायुक्त कार्यालय पर इस दौरान 28 करोड रुपए वेतन भत्तों व अन्य सुविधाओं पर खर्च किए जा चुके हैं। बात विधानसभा सत्र पर होने वाले खर्च की हो या लोकायुक्त कार्यालय पर। जनता की गाढ़ी कमाई का यह पैसा क्यों उड़ाया जा रहा है? जब कोई काम नहीं करना है? अब वक्त आ गया है कि जनता सरकार व सत्ता में बैठे लोगों से सवाल भी करें और सत्ता में बैठे लोग जवाब भी दें। 25 साल से राज्य में जो चल रहा है उसके लिए जिम्मेवार कौन है इसकी जवाब देही तय होनी ही चाहिए। सिर्फ इवेंट मैनेजमेंट से काम नहीं चलना चाहिए।





