डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा

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उत्तराखंड में बीते कुछ सालों से डेमोग्राफी चेंज की अनुगूंज लोग सुनते आ रहे हैं। अक्सर मुख्यमंत्री राज्य की डेमोग्राफी में होने वाले परिवर्तन पर न सिर्फ अपनी चिंता जाहिर करते रहे हैं बल्कि अवैध रूप से राज्य में रहने और बसने वालों के खिलाफ उनका अभियान भी जारी है। अभी—अभी उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि कहीं भी चादर बिछाकर बैठने वालों को बाहर किया जाएगा। सभी जिलों के अधिकारियों को बहुत पहले उनके द्वारा यह निर्देश दिए जा चुके हैं कि वह अपने जिलों में बनी धार्मिक संरचनाओं का सत्यापन करें और अवैध रूप से जमीनों पर बनी इन संरचनाओ को तत्काल प्रभाव से हटाया जाए। इस अभियान के तहत अब तक सैकड़ो की संख्या में मजारों पर बुलडोजर की कार्यवाही की जा चुकी है, और अभी भी जारी है। अब इसे लेकर जो ताजा रिपोर्ट सामने आई है उसके अनुसार पछवादून के 28 गांव ऐसे बताये जा रहे हैं जिनमें हिंदुओं की आबादी इतनी कम हो गई है कि वह अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ गए हैं। कहा जा रहा है कि जिन गांवों में मुस्लिम समुदाय के प्रधान हैं वहां तेजी से अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ती जा रही है जिसके कारण मुसलमान की आबादी हिंदुओं से अधिक हो गई है। इन प्रधानों के माध्यम से सीमावर्ती राज्यों से मुस्लिमों को बुलाया जा रहा है तथा बसाया जा रहा है और उनके फर्जी प्रमाण पत्र भी तैयार कराये जा रहे हैं। इस खुलासे के बाद अब मुख्यमंत्री धामी द्वारा पूरे राज्य में बाहरी लोगों के सत्यापन का अभियान चलाए जाने की बात कही जा रही है उनका कहना है कि जिसने भी ऐसे व्यक्तियों के फर्जी कागजात और प्रमाण पत्र तैयार कराए हैं उनके खिलाफ तो सख्त कार्यवाही होनी ही इसके साथ—साथ उन अधिकारियों पर भी कार्यवाही की जाएगी जिनके लापरवाही से ऐसा हुआ है। सही मायने में यह डेमोग्राफी चेंज एक राजनीतिक मुद्दा है जो सीधे—सीधे वोट से जुड़ा हुआ है। सरकार पर इस बात के आरोप भी लगते रहे हैं कि वह अल्पसंख्यकों को निशाना बनाये हुए हैं। बात चाहे राज्य में उन अवैध मदरसों की हो या फिर अवैध मजारों की, जिनके जरिए मुस्लिम समाज से जुड़ते हैं। राज्य सरकार द्वारा राज्य में चलाये गए अभियान का कितना फायदा या नुकसान हुआ है। यह अलग बात है लेकिन इस मुद्दे ने समाज को हिस्सो—हिस्सो में जरूर बांट दिया है। बात सिर्फ दून, हरिद्वार या फिर उधमसिंह नगर जैसे जिलों तक ही सीमित नहीं है। जहां बड़ी संख्या में बाहर से आए हुए लोगों की आबादी में बढ़ोतरी होने की बात कही जा रही है राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में भी इसका असर देखा जा सकता है। उत्तरकाशी में मस्जिद को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हुई टकराव की घटना से लेकर पहाड़ के गांवाें की सीमाओं पर लगाए गए उन नोटिस बोर्ड तक जिनमें बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाने की बात लिखी गई थी। लव जिहाद और थूक जिहाद जैसे मुद्दों पर भड़की सांप्रदायिक हिंसा तक को राज्य के लोग देख चुके हैं। हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हटाने को लेकर हुई हिंसा की वारदात ने राज्य को हिला कर रख दिया है। ऐसा नहीं है कि राज्य बनने से पहले इन पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों का आना—जाना व्यापार करना और बसना प्रतिबंधित था या वह सब कुछ पहले नहीं होता था जो अब हो रहा है। फर्क सिर्फ इस बात का है कि अब इस पर राजनीति हावी हो चुकी है जो पहले नहीं थी। राज्य के शहरी क्षेत्र में बसी हजारों मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को किसने बुलाया और बसाया तथा इसका क्या उद्देश्य रहा है? यह विचारणीय सवाल है। देश में होने वाली हिंदू—मुस्लिम की राजनीति से उत्तराखंड भी भला कैसे अछूता रह सकता था।

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