मामला चाहे कोई भी क्यों न हो सत्ताधारी नेता अगर अपनी स्वयं की छवि चमकाने और सत्ता में बने रहने के उद्देश्य से अगर काम करते हैं तो ऐसी स्थिति में वह एक दिन सब कुछ गंवा देते हैं। उत्तराखंड की भाजपा सरकार की बात करें तो वह आपदा काल में बचाव तथा राहत कार्यों से लेकर अवैध खनन और पेपर लीक से लेकर कानून व्यवस्था तक सभी मोर्चो पर इस तरह विफल साबित हो चुके हैं कि अब इस बात को हर आम आदमी तक जान समझ चुका है कि जिस सरकार को हमने चुनकर कुछ करने का मौका दिया था उसने अब तक जनता के लिए क्या किया है? धराली आपदा पीड़ित आज अगर अपना दुख दर्द लेकर हाई कोर्ट के दरवाजे पर खड़े हैं और अदालत सरकार से कह रही है कि पीड़ितों की मदद के नाम पर अब तक उसने क्या किया है? तथा आपदा राहत के लिए सरकार को नियम कानून बनाने चाहिए तो यह उसकी नाकामी का ही सबूत है। आपदा राहत और बचाव कार्यों का सरकार द्वारा जिस तरह से ढोल पीटा गया वह हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं। आपदा के कई कई दिन बाद तक मदद तो दूर आपदा राहत टीमें और सत्ता में बैठे नेता और अधिकारी पहुंच नहीं पाये। राज्य में होने वाले अवैध खनन के खेल को कौन नहीं जानता है। आम जनता के सामने आज इस अवैध खनन के कारण ही बाढ़ जैसी समस्याओं को कभी किसी के द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया है कितने ही लोग इसके विरोध में आमरण अनशन करते—करते अपनी जान की आहुति दे चुके हैं लेकिन आज तक यह खेल धड़ल्ले से जारी है। सत्ता में बैठे लोगों और खनन के खेल से करोड़ों में खेलने वाले लोगों को किसी भी बात से कोई प्रभाव न पड़ा है और न पड़ने वाला है। अभी बीते दिनों जब यूकेएसएसएससी का पेपर लीक हुआ था तो किस तरह से शासन—प्रशासन द्वारा इसे पेपर लीक का मामला होने से नकार दिया गया और अपनी पेस सेविंग का प्रयास किया गया उसकी सारी हकीकत सामने आ चुकी है। युवा रोजगार जब सत्ता के विरोध में सड़कों पर उतर आए और सरकार के उनके आंदोलन को समाप्त कराने के सभी प्रयास असफल हो गए तब सरकार को समझ आया कि अगर उसने युवाओं के दर्द को दबाया तो इसके परिणाम अत्यंत ही खराब हो सकते हैं। हिस्सो—हिस्सों में मुख्यमंत्री धामी को उस सच को स्वीकार करना पड़ा जो उनकी सरकार पर भारी पड़ चुका था। पहले सीबीआई की जांच और फिर अब परीक्षा को रद्द करने का फैसला सरकार की बड़ी नाकामी को तो दर्शाता ही है साथ—साथ उसकी कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाता है सरकार में बैठे नेताओं ने भले ही युवाओं की सारी मांगों को मान लिया है लेकिन इस पूरे प्रकरण में सरकार की न सिर्फ किरकिरी हुई है अपितु इसका राजनीतिक भारी नुकसान भी हुआ है। राज्य में महिलाओं के यौन शोषण और उनकी हत्याओं से जुड़े कितने ही मामले सामने आ चुके हैं जिनमें भाजपा के नेताओं की भूमिका रही है। अंकिता भंडारी हत्याकांड को लेकर अभी प्रदेश में आक्रोश है कानून व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा पर सरकार की छवि कितनी अच्छी है इसे भी सत्ता में बैठे लोग बखूबी जानते हैं। ट्रिपल इंजन की सरकार होने और पंचायत चुनाव की घटनाओं ने भी भाजपा को भारी झटका दिया है। 2027 में जीत की हैट्रिक का दावा करने वाले नेताओं को अपने रिकॉर्ड कार्यकाल पर गौर करने की जरूरत है।