मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का राज्य की जनता से किया गया सबसे बड़ा वायदा कि वह देवभूमि को 2025 तक नशा मुक्त राज्य बना देगें क्या पूरा होने वाला है। जी नहीं, हालांकि सीएम धामी ने अपनी ओर से इसके लिए लाखों प्रयत्न कर लिये गये है। लेकिन सम्बन्धित विभागोें की लचर कार्यश्ौली के चलते उनका यह वायदा पूरा होता नहीं दिख रहा है। 2025 की विदाई मे भी अब कुल दो—ढाई माह का समय शेष बचा है और राज्य के कई हिस्सो से बड़े—बड़े नशा माफियाओं की गिरफ्तारी भी आये दिन हो रही है। लेकिन नशे का यह काला कारोबार अब राज्य में इतनी गहरी पैठ बना चुका है कि उसको उखाड़ पाना अब असंभव साबित हो रहा है। राज्य का कोई भी जिला अब ऐसा नहीं बचा है जहंा इन नशा तस्करों की घुसपैठ न हो। कुछ वर्ष पूर्व ट्टउड़ता पंजाब’ जैसी फिल्म जनता के सामने आयी थी। जिसने इस ड्रग्स की महामारी की तरफ लोगो का ध्यान खींचा था किन्तु आज तो देश का हर एक हिस्सा ड्रग्स की आंधी में उड़ता हुआ दिखायी देता है। बात अगर उत्तराखण्ड की करें तो राज्य मेें विगत तीन वर्षो में ंमाह अगस्त 2025 तक एनडीपीएस एक्ट के अन्तर्गत 3431 मुकदमों में 4440 नशा तस्कर गिरफ्तार किये गये, जिनसे 681.09 किलोग्राम चरस, 649.79 किलोग्राम डोडा, 61.22 किलोग्राम अफीम, 0.39 ग्राम कोकीन, 58.98 किलो ग्राम हेरोईन, 4954.34 किलो ग्राम गांजा तथा 720278 गोलिया, 38919 इंजेक्शन व 718201 कैप्सूल बरामद किये गये, जिनका अनुमानित मूल्य 2,080,431,296 रूपये है। इतने बड़े पैमाने पर राज्य में हो रही नशा तस्करी यह बताने के लिए काफी है। कि राज्य में नशीले सामान की कितनी खपत हो रही है। राजधानी देहरादून से लेकर तमाम गावों और बस्तियों मेंं ड्रग्स खुलेआम बेची जा रही है। अरबो—खरबों का अवैध ड्रग्स कारोबार व उसका नेटवर्क जो देश विदेशो तक फैला है उस पर लगाम लगाना कोई आसान काम नहीं है। स्कूली छात्र—छात्राओं से लेकर कूड़ा बीनने वाले बच्चों और कालेजों तथा होस्टलों तक ड्रग्स की सप्लाई को रोक पाना पुलिस प्रशासन के लिए एक गम्भीर चुनौती है। प्रदेश भर में नशा तस्करों का एक मजबूत नेटवर्क सक्रिय है। मेडिकल स्टोर से लेकर तमाम झोलाछाप डाक्टरों जो सिर्फ नाम मात्र के लिए अपने क्लीनिक खोले बैठे है इस ड्रग्स के सप्लायर बने हुए है। सरकार से सहायता प्राप्त कर चलाये जाने वाले नशा मुक्ति केेंद्रो को उनके संचालकों द्वारा अपनी कमाई का जरिया बनाया हुआ है तथा उनका नशा मुुक्ति अभियान से कोई सरोकार नहीं है। नशा इतना बड़ा अभिशाप बन चुका है कि अधिकांश अपराधों की पृष्ठभूमि में नशा ही अहम कारण के रूप में सामने आया है। सवाल यह है कि क्या उत्तराखण्ड सरकार इस समस्या को इतनी गम्भीरता से ले रही है कि अब से दो—ढाई माह बाद यानि 2025 के खत्म होने तक वह राज्य को नशा मुक्त कर देगी? यह वाकई सोचनीय सवाल है।