आत्मा की उन्नति के लिए एक क्षण व्यर्थ न जायेः आचार्य ममगाईं

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देहरादून। मानव का समय जीविका के लिए दिन निद्रा के लिए रात्रि के साथ व्यर्थ जीवन होता है। भगवान जैसे विषय सुनने के लिए उसके पास आज सुखों की दौड़ में समय नहीं होता। यदि हम अपनी आत्मा की वास्तविक उन्नति चाहते हैं तो जीवन को इस प्रकार ढालना होगा, जिससे सारे कार्य करते हुए एक क्षण का समय नष्ट किये बिना निरंतर भगवान का चिंतन व भागवत सेवा करते रहें जिससे ऐसा अभ्यास हो जाये कि हर समय परमात्मा का स्मरण बना रहे।
उक्त विचार ज्योतीस्पीठ व्यासआचर्य शिव प्रसाद ममगाई ने मोहनपुर प्रेम नगर में डोभाल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में व्यक्त करते किये। उन्होंने कहा कि यह मानव योनि सबसे विकसित तभी समझी जाती है जब इसमें पूर्ण आत्मज्ञान के साथ आध्यात्म ज्ञान की चेतना हो। प्राकृत जगत की माया शक्ति जीव को इस बात के लिए बाध्य करती है कि इन्द्रिय तृप्ति की अपनी नाना प्रकार की इच्छाओं के कारण यह अपनी देह बदल दे। ये इच्छाएं कीट से लेकर मनुष्य, देवताओं आदि उत्तम देहो तक नाना योनियों में व्यक्त होती है अपने पुण्य व पाप कर्माे के अनुसार जीव नाना प्रकार की योनियों व शरीर धारण करता है।
आचार्य ममगाईं ने कहा कि जीव पूर्ण से भिन्न अंश है व पूर्ण कभी नहीं हो सकता। इन्द्रिय भोग मद के कारण ही वह तरह—तरह की योनियों मे भटकता है। अपने जीवन के अस्तित्व काल में किये गये असत्य कर्माें का स्मरण करने के लिए ही उसे देह मिलती है ईश्वर की कृपा रूपी प्रकाश से दूर रहकर जीवन की राह से भटक जाते है उस परमात्मा की कृपा रूपी प्रकाश पाने के बाद सीधा और सरल मार्ग मिलता है। वासना का अंत उपासना से होता है। जिसका जो धर्म प्रभु ने निश्चित किया है उसका पालन करते हुए जो भक्ति करता है उस पर परमात्मा सुखों की वर्षा करते हैं। कितने भक्ति तो करते हैं किन्तु धर्माचरण नहीं करते उनका कोई कर्म परमात्मा नहीं स्वीकारते कथा अंतः करण को पकड़ती है जिससे भव रोग का निवारण हो जाता है इस रोग को मिटाने वाली भवोषधी भगवत कथा है।
इस अवसर पर विशेष रूप से श्रीमती शकुंतला डोभाल, प्रशांत डोभाल, प्रत्युष डोभाल, नवनीत डोभाल, संजीव, सौरभ, महेंद्र प्रसाद नौडियाल, ऋतविक, संचित शर्मा, मानस डोभाल, कार्तिक डोभाल, लावण्या, आचार्य कालिका प्रसाद थपलियाल, भुवनेश्वरी बडोनी, सुरेंद्र नौड़ियाल, सुभाष रतुड़ी, उषा गार्गी, सुलोचना, साधना, इंदु, विजयलक्ष्मी, विमला, मधु, अनुपमा, श्रेया, श्लोका शर्मा, सतीश थपलियाल, आचार्य दामोदर सेमवाल, आचर्य संदीप बहुगुणा, आचर्य सुनील ममगाई, आचार्य हिमांशु मैठाणी, आचार्य अरुण थपलियाल आदि भ्क्त गण भारी संख्या में उपस्थित रहे।

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