इन दिनों जो दो खबरें चर्चाओं के केंद्र में हैं उनमें से पहली खबर है लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल कर दिया जाना और दूसरी खबर है कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक रमेश कुमार का सदन में रेप पर दिया गया बेतुका बयान, जिसकी गूंज कल संसद में सुनाई दी गई। इन दोनों ही मुद्दों की गंभीरता को न समझने वाले हमारे माननीय जनप्रतिनिधियों द्वारा जिस तरह की शर्मनाक बयान बाजी की गई वह निंदनीय है इसलिए इन मुद्दों पर हर जगह चर्चा हो रही है। आए दिन हमारे माननीय किसी न किसी मुद्दे पर ऐसे बयान देकर खुद को और देश को भी शर्मिंदा करते रहते हैं। रेप पर विधानसभा में विधायक रमेश कुमार द्वारा जो अभद्र बयान दिया गया है भले ही उस पर वह माफी मांग ले और सपा के सांसद ने लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर जो टिप्पणी की है उससे सपा यह कहते हुए पल्ला झाड़ ले कि यह बयान सपा का नहीं है उनकी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है लेकिन सवाल यह है कि एक जनप्रतिनिधि का इस तरह का आचरण, उसकी महिलाओं के प्रति इस तरह की घिनौनी सोच और समझ रखने वाले अपराधी प्रवृत्ति के गुंडे बदमाशों को हमें विधान भवन और संसद भवन में बैठे हुए देखना पढ़ रहा है। रमेश कुमार जैसे विधायकों को यह समझने की जरूरत है कि जिस अंग्रेजी कहावत का वह हिंदी तर्जुमा कर सदन में कह रहे हैं वह सदन ब्रिटेन का नहीं है हिंदुस्तान का है और ऐसी घटिया सोच के लिए हिंदुस्तान में कोई जगह नहीं है। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि जिन माननीयों से देश की जनता एक आदर्श व्यवहार की अपेक्षा रखती है वह माननीय लगातार और बार—बार इस तरह की घटिया चाल चरित्र का प्रदर्शन कर रहे हैं और देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा राजनीतिक दल उन्हें रोक पाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा में अश्लील फिल्म देखने वाले एक माननीय को पार्टी या व्यवस्था द्वारा दंडित किए जाने के बजाय उसे उपमुख्यमंत्री बना दिया जाता है। कांग्रेस को चाहिए कि इस घटना की निंदा करने की बजाय उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर एक नजीर पेश करें। राजनीतिक दल जब तक खुद दागियों और अपराधियों को बाहर का रास्ता नहीं दिखाएंगे तब तक इन माननीयों के आचरण में सुधार नहीं हो सकता। किसानों की हत्या के षड्यंत्र में फंसे भाजपा केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा को भाजपा संरक्षण देने में जुटी है और सपा अपने सांसद सफीकुर्रहमान वर्क को बचाने में जुटी है ऐसे में हम भला कैसे किसी स्थिति को बदलने की उम्मीद कर सकते हैं। देश में हर 16 मिनट में एक रेप की घटना होती है तो हो, आम जनता का शोषण और उत्पीड़न होता है तो हो लेकिन देश के इन माननीयों के पास किसी स्वस्थ सोच और सकारात्मक चर्चा के लिए भी समय नहीं है तो इससे निराशाजनक स्थिति क्या हो सकती है?