राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च

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देश की सर्वोच्च अदालत ने बीते कल उत्तराखण्ड का चारधाम आलवेदर रोड को लेकर जो फैसला सुनाया है उससे अब इस अति महत्वाकांशी परियाजना के जल्द पूरा होने की उम्मीद की जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 में इस 900 किलोमीटर लम्बी सड़क परियोजना की नींव रखी थी तथा 12000 करोड़ की इस परियोजना के जरिये उत्तराखण्ड के सभी चारों धामों को जोड़ा जाना था। उच्च हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय सुरक्षा को लेकर इसका कई स्तर पर विरोध हो रहा था। पहाड़ का अंधाधुध कटान और पेड़ो के कटान को लेकर इस तरह की आंशकाएं जताई जा रही थी कि प्रकृति के साथ विकास के नाम पर की जा रही इस छेड़छाड़ से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचेगा और प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से अति संवेदनशील माने जाने वाले इस क्षेत्र का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जायेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 के अपने आदेश में इसकी चौड़ाई 5.5 मीटर तक सीमित रखने को कहा गया था। लेकिन केन्द्र सरकार ने इसे चुनौती दी थी जिसे बढ़ाकर 7 मीटर कर दिया गया था। लेकिन अब अदालत ने इसकी चौड़ाई बढ़ाकर 10 मीटर कर दी है। अदालत ने इस आलवेदर की चौड़ाई बढ़ाने का जो फैसला सुनाया गया है उसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील है। अभी हाल के वर्षो में चीन के साथ जो सीमा पर टकराव और अतिक्रमण की घटनाएं घटित हुई उसका सन्दर्भ लेेते हुए अदालत ने कहा है कि किसी भी फैसले की समीक्षा करते हुए अदालत सेना की अव संरचना जरूरतों का अनुमान नहीं लगा सकता उसे रक्षा मंत्रालय की बात को ही सच मानना होता है। इसमें संदेह नहीं है कि इस ऑल वेदर रोड की देश की सुरक्षा के लिहाज से बड़ी जरूरत है। चीन की सीमा तक सेनाओं और अस्त्र—शस्त्रों की पहुंच अत्यंत सरल हो जाएगी। लेकिन पर्यावरणीय महत्व को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस ऑल वेदर रोड के निर्माण में जो बाधाएं आ रही थी वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश से समाप्त भी हो जाएगी और वह अब ऋषिकेश से लेकर चीन की सीमा तक एक बेहतर सड़क मार्ग जल्द तैयार हो जाएगा जिस पर किसी भी मौसम में सुगमता के साथ आवागमन संभव हो सकेगा। उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जिलों में जहां इस सड़क मार्ग को लेकर तमाम तरह की चिंताएं और विरोध हो रहा था, के बीच अब यमुनोत्री और गंगोत्री तक पहुंचने वाले यात्रियों के लिए सफर अति आसान हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उत्तराखंड राज्य को इसका बड़ा फायदा नहीं होगा। राज्य का पर्यटन इस परियोजना के साथ दून—दिल्ली एक्सप्रेसवे के पूरा होते ही कुलांचे भरने लगेगा। लेकिन संभावी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी और अधिक बढ़ जाएगा इस सच को नकारा नहीं जा सकता है। जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है तो उसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है यह देश की सर्वाेच्च प्राथमिकता का विषय है बाकी सब कुछ इसके बाद।

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