संविधान व आपातकाल में फंसा देश

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साल 2024 के आम चुनाव ने संविधान को राजनीतिक चर्चाओं में लाकर खड़ा कर दिया है। विपक्ष द्वारा अपने चुनाव को संविधान और लोकतंत्र बचाओ के मूल मुद्दे पर लाकर न सिर्फ खड़ा किया गया अपितु नतीजों पर भी इसका अपेक्षित असर डालने में विपक्ष कामयाब हो गया। संसद के शपथ ग्रहण समारोह में भी हमने जय संविधान की गूंज सुनी। लोकसभा की 63 सीटें गंवा देने और पूर्ण बहुमत के आंकड़े से 32 सीटें पीछे रह जाने वाली भाजपा और उसके नेता भला इसे कैसे स्वीकार कर सकते थे? इसकी बानगी उनके द्वारा आपातकाल पर लाया गया प्रस्ताव उनके अंदर की बेचैनी को बयां करने के लिए काफी था। बीते कल मोदी सरकार द्वारा 25 जून 1975 को लागू किए गए आपातकाल पर अधिसूचना जारी किया जाना और हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाए जाने की घोषणा इस बात का सबूत है कि भाजपा को इन चुनावी नतीजों से कितना गहरा आघात पहुंचा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर जो गलत फैसला 50 साल पहले किया गया था अब 50 साल पुराने इतिहास को अपने बचाव का हथियार बनाने की सोच के साथ आगे बढ़ने वाली भाजपा की वर्तमान सरकार का यह फैसला कितना सही है इस पर भी विचार करने की जरूरत है। देश की आम जनता के बीच जाकर भाजपा नेताओं को लोगों से पूछना चाहिए कि उसके इस फैसले पर उनकी क्या राय है? देश की उस युवा आबादी को जिनका 1975 में जन्म भी नहीं हुआ इस संविधान हत्या दिवस को मनाने का क्या लाभ होगा? जिन युवाओं को रोजगार की जरूरत है उनकी किसी समस्या के समाधान पर सरकार क्या कर रही है संविधान हत्या दिवस से किस समस्या का समाधान करने जा रही है? समझ से परे है। कांग्रेस ने 1975 में जो गलती की थी उसकी सजा देश की जनता उसी समय कांग्रेस को दे चुकी है। भाजपा सरकार में मंत्री नितिन गडकरी की बात ही इन नेताओं को सुन लेनी चाहिए जो वह कह रहे हैं कि बीते समय में कांग्रेस ने जो गलतियां की थी भाजपा को उन्हें नहीं दोहराना चाहिए। लेकिन भाजपा के नेता किसी और की बात तो क्या मानेंगे जब वह संघ और नितिन गडकरी की बात नहीं मान रहे है। निश्चित ही यह विनाश काले विपरीत बुद्धि की कहावत को चरितार्थ करने जैसा है। अपने 10 साल के समय में आपको इतना कुछ करने का मौका मिला था कि आप जो चाहे कर सकते थे लेकिन इन 10 सालों में आपने जो किया अब वह आपको एक्सपोज कर रहा है। जिस तरह के झूठ—फरेब व लफ्फे लफ्फाजी कर आप सत्ता में बने रहना चाहते हैं उसे अब देश के लोग जान चुके हैं। तीसरी बार सत्ता में बने रहने का मौका अभी भी जो आपको मिला है उसमें आप बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं कि जो जनता को यह संदेश दे सके कि भूल सभी से होती है लेकिन आप भूल सुधारना चाहते हैं लेकिन भाजपा सरकार के काम व नेताओं के तेवर यही बता रहे हैं कि वह खुद भी आपातकाल की ओर देश को धकेलने जा रहे हैं। आने वाले कुछ महीने या साल में इस देश की राजनीति को किस ओर ले जाते हैं समय ही बताएगा लेकिन वह भाजपा के पक्ष में रहने वाला नहीं होगा यह जरूर तय है।

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