महंगाई की मार, गरीबों का जीना मुहाल

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भले ही सरकारी आंकड़ों में खाघ महंगाई दर नियंत्रण में दिखाई जा रही हो और वह आरबीआई द्वारा तय सीमा से नीचे 5 फीसदी के आसपास हो लेकिन देश की गरीब जनता बढ़ती महंगाई से इस कदर त्रस्त है कि उसकी समझ में ही नहीं आ रहा है कि वह अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करें। सब्जियां हर आम और खास परिवार के लिए जरूरी है। लेकिन बाजार में इन दिनों कोई भी सब्जी 40—45 और 50 रूपये किलो से नीचे नहीं है। कद्दू जिसे लोग सीताफल भी कहते हैं वह भी 40 रूपये किलो है लौकी 50, तोरई 60 और अरबी 80 तथा टमाटर 70—80 रुपए प्रति किलो है। बीन 80 रूपये किलो है तो करेला—कटहल 50 व 60 रूपये किलो है। बात अगर प्याज की की जाए तो वह भी 40—45 और आलू 30—35 रुपए किलो है। बात अगर दंालो और खाघ तेलों की की जाए तो दालें 100 से 200 रुपए और खाघ तेल डेढ़ सौ से ढाई सौ रुपए प्रति लीटर है। सब्जियों के इन आसमान छूते भाव के बारे में सत्ता में बैठे लोगों द्वारा दो ही बातें कही जा रही है देश में बारिश और बाढ़ के कारण सब्जियों की फसलें खराब हो गई है या फिर मंडी तक सब्जियां उतनी मात्रा में नहीं पहुंच पा रही है जितनी मांग है। कीमत का सारा खेल ही सप्लाई और डिमांड पर ही तो चलता है। सत्ता में बैठे लोगों का कहना है कि महंगाई एकदम नियंत्रण में है और विपक्ष इसे बेवजह मुद्दा बना रहा है। अभी बीते दिनों सरकार द्वारा कुछ फसलों के एमएसपी में 10 से 12—13 फीसदी तक बढ़ोतरी की गई थी। देश में दालों का उत्पादन भरपूर होता है सरकार द्वारा दालों व तिलहन का हर साल एमएसपी न सिर्फ घोषित किया जाता है बल्कि इसमें बढ़ोतरी भी की जाती है लेकिन सवाल यह है कि सरकार एमएसपी पर कितनी दालें खरीदती है, महज 0.43 फीसदी। यह अत्यंत ही हैरान करने वाली बात है कि देश में दालों की भरपूर पैदावार के बाद किसानों को दालें इंपोर्ट नहीं करने दी जाती हैं और न सरकार खुद खरीदती हैं। किसान अपनी दालों को औने—पौने भाव में बाजार में बेचते है और मुनाफाखोर उसी दाल को बेचकर अपनी जेबें भरते हैं तथा सरकार को दाले महंगी होने पर बाहर से दालें मंगवानी पड़ती है। आजादी के 75 साल बाद भी खाघान्न उत्पादों के भंडारण की उचित व्यवस्था अभी तक नहीं हो सकी है ठीक वैसी ही स्थिति तेलों की भी है। केंद्रीय बजट आने से ठीक पहले चारों ओर महंगाई के मुद्दे की गूंज सरकार को बेचैन किए हुए हैं। नीतिगत खामियों के कारण किसानों को उनकी उपज का सही दाम न मिल पाने से जहां किसान आर्थिक बदहाली की मार झेल रहा है वहीं आम आदमी महंगाई से बेहाल है। पिछली सरकारों ने भंडारण व विपणन की व्यवस्था को अगर सुधारा होता तो किसान व आम आदमी को वह सब नहीं झेलना पड़ता जो वह झेल रहा है।

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